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प्रश्नों के उत्तर
यदि गृहस्थ है, तो हिंसा, असत्य, चौर्य, मैथुन और परिग्रह यादि दोष उस में पाए जा सकते हैं, पर अन्तर इतना रहता है कि सम्यक्त्वी इन दोषों को दोष ही समझता है, इन कार्यों को जीवन का दूषण मानता है, इस के विपरीत मिथ्यात्वी इनको दोष नहीं समझता वह इन्हें जीवन का भूषण मान कर चलता है । दूषण को दूषण समझना सम्यक्त्व है, और दूषण को भूषण मानना मिथ्यात्व है ।
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" देवी देवताओं का पूजन, स्तवन, मोहमाया का सम्वर्धक है" यह ज्ञान रखता हुग्रा सम्यक्त्वी यदि देवपूजन करता है, तो समझना चाहिए कि सम्यक्त्वों के पास अभी सम्यक् विश्वास ही है, पर अभी वह तदनुसार ग्राचरणशील नहीं वन सका । यह सत्य है कि सम्यक्त्व जब ग्राचरण का स्थान ले लेता है तभी वह निर्वाण का कारण बनता है, अन्यथा नहीं ।
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• प्रश्न हो सकता है कि जो सम्यक्त्व ग्राचरण का स्थान नहीं ले पाता, उसका जीवन में क्या फायदा है ? इसका उत्तर यह है कि सम्यक्त्व का यह फायदा होता है कि सम्यक्त्वो संसार-वर्धक कार्यों को हेय समझता है । उन को दुःखों का उत्पादक जानता है और उन को छोड़ने का प्रयत्न करता है । यदि करता भी है तो विवशता से करता है और धीरे-धीरे उन से भी अलग रहने का प्रयास करता रहता है, किन्तु सम्यक्त्व - विहीन मनुष्य बुराई को बुराई नहीं समझता है और कभी उस बुराई को छोड़ने का प्रयास भी नहीं करता है, सदा उसमें संलग्न रहता है, सक्षेप में कहा जाए तो सम्यक्त्वी का सुधार संभव है, किन्तु मिथ्यात्वी का सर्वथा असंभव ।
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