Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 588
________________ ९२५.. . प्रश्नों के उत्तर .. - .. है। दिन में एक वार आहार की इच्छा पैदा होती है । इसमें मनुष्यों : ___ के छहों सिंहनन और छहों संस्थान होते हैं। इस बारे में मनुष्य :. . पांचों गतियों में जाते हैं । २३-तीर्थकर, ११-चक्रवर्ती; ९-वासुदेव और ९ प्रतिवासुदेव भी इसी आरे में होते हैं। . . तीर्थंकर शब्द का अर्थ होता है-तीर्थ की स्थापना करने वाला। तीर्थ शब्द धर्म का परिचायक है। संसार समुद्र से इस आत्मा को । .. तारने वाला एक मात्र धर्म ही है। धर्म रूप तीर्थ की स्थापना करने ... वाला तीर्थंकर होता है । धर्म का आचरण करने वाले साधु, साध्वी, ....श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ को भी गौण दृष्टि से तीर्थ १-वज्रर्षभनाराच-सहनन-एक हजार मन का भरा हुआ शकट शरीर पर से निकल जावे तो कच्चे सूत के समान मालूम पड़े वह संहनन-हड्डियों की रचना-विशेष । २-ऋषभनाराच-संहनन--एक सौ मन का शकट शरीर पर से निकल जावे तो कच्चे .. ... धागे की तरह मालूम पड़े वह संहनन । ३. नाराच-संहनन-१० मन का शक : ... जिस शरीर पर से निकल जावे तो मी कच्चे धागे की तरह मालूम पड़े वह संहनन । .. - ४-अर्द्धनाराच-संहनन-एक मन का........ फच्चे धागे की तरह मालूम देवे । वह संहनन। ५-कीलिका-संहनन-जिसमें नरम झांड की तरह आसानी से हडियां झक . जाती है, जो अधिक वजन सहन नहीं कर सकतीं, वह संहनन । ६-सेवार्तकसंहननजिस में हड्डियां अंधिक दुर्बल हों, साधारण वजन से टूट जाएं वह संहनन । १-समचतुरस्रसंस्थान-जिस में शरीर की रचना, ऊपर, नीचे तथा बीचमें .... समभाग रूप से हो । २-न्यग्रोध-परिमण्डल-संस्थान-बंड़ के समान जिस शरीर की .. रचना नीचे से खराब और ऊपर से अच्छी हो अर्थात् नाभि से नीचे के अंग छोटे, और... ऊपर से बड़े हों। ३-स्वाति-संस्थान-जिसमें नाभि से नीचे के अंग पूर्ण और ऊपर के .. अपूर्ण हों। ४-कुञ्जकसंस्थान – जिसमें छाती पर या पीठ पर कुबड़ हो। ५-.. __वामनसंस्थान-जिसमें शरीर बौना हो, ठिगना हो। ६ हुण्डकसंस्थान--जिसमें .. - शारीररिक अंगोपांग किसी विशेष आकार में न हों। .. .........

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