Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 592
________________ : प्रश्नों के उत्तर '.mirmwom - जाएगी.... ........... ....... . .... .., “इस पारे के मनुष्यों की शारीरिक उत्कृष्ट अवगाहना एक "हाथ की और उत्कृष्ट आयु सोलह और बीस वर्ष की होगी। ये, अधिक सन्तान वाले होंगे। छः वर्ष की नारी सन्तान को जन्म · . “देगी। इन के वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श अशुभ होंगे। शरीर नानाविध व्याधियों से ग्रसित रहेगा। हृदय राग, द्वेष की भट्ठी वन जायगा । धर्म, कर्म का इन्हें कोई भान नहीं होगा। वैताव्यपर्वत में ...७२ विलें होंगी, वे ही इन के निवासस्थान होंगे। ये लोग सूर्योदय ...और सूर्यास्त के समय अपने-अपने विलों से निकलेंगे और गंगा, सिंधु महानदी से मच्छ, कच्छप आदि जीवों को पकड़ कर रेत में गाड़ देंगे। सायं के गाडे हुए मच्छ आदि को सुबह निकाल कर खाएंगे, और सुबह के गाड़े हुए मच्छ आदि को सायं को निकाल कर खाएंगे। ये .. माँसाहारी जीव मर कर नरकों में उत्पन्न होंगे। ..... . .... उत्सर्पिणीकाल-... .... .... ..... -:-: अवसर्पिणीकाल के जिन छः प्रारों का वर्णन ऊपर दिया गया .. है, वही छः पारे उत्सर्पिणी काल में होते हैं । अन्तर केवल इतना ...है कि उत्सर्पिणीकाल में ये उलटे क्रम से होते हैं । उन' का संक्षिप्त . ..विवरण निम्नोक्त है-......... .............. ... दुषमदुषमा-यह पारा २१ हजार वर्षों का होता है। इस .. में मनुष्यों का वर्ण, रस, गन्ध, और स्पर्श प्रादि प्रशस्त होना प्रारंभ ... हो. जाता । यह पाराः अवसर्पिणी कालीन छठे प्रारें के समान - होता है। .:. दुषमा-यह भी २१ हजार वर्षों का होता है। यह पारा पहले श्रावण कृष्णा प्रतिपदा से चालू होता है। इसके प्रारंभ होते ही पांच प्रकार की वृष्टि सम्पूर्ण भरतक्षेत्र में होती है। प्रथम वर्षा से धरती की उष्णता दूर हो जाती है। दूसरी से पृथ्वी की दुर्गन्ध दूर

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