Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 603
________________ अठारहवां अध्याय 4 विशुद्धतर ज्ञान का सामर्थ्य रखते हैं । चार बातें ऐसी हैं जो नीचे की अपेक्षा ऊपर-ऊपर के देवों में कम-कम पाई जाती है । गति, शरीर परिग्रह और अभिमान | गमन क्रिया की शक्ति और गमन क्रिया में प्रवृत्ति ये दोनों ऊपर-ऊपर के देवों में कम पाई जाती है। क्योंकि ऊपर-ऊपर के देवों में उत्तरोत्तर महानुभावता और उदासीनता अधिक होने के कारण देशान्तर विषयक क्रीडा करने की रति कम कम होती जाती है । सानत्कुमार यादि के देव जिन की जघन्य स्थिति दो सागरोपम की होती है, वे अधोभाग में सातवें नरक तक और तिरछे प्रसंख्यात हजार कोड़ाकोड़ी योजन पर्यन्त जाने का सामर्थ्य रखते हैं । इसके बाद जघन्य स्थिति वाले देवों का गति-सामर्थ्यं घटते घटते यहां तक घट जाता है कि ऊपर के देव अधिक से अधिक तीसरे नरक तक ही जाने का सामर्थ्य रखते हैं । शक्ति चाहे अधिक हो, पर कोई देव प्रघो भाग में तीसरे नरक से ग्रागे न गया है और न जायेगा । : ९४०. . 4. शरीर का परिमाण पहले, दूसरे स्वर्ग में सात हाथ का, चौथे 'स्वर्ग में छः हाथ का, पांचवें, छठे स्वर्ग में पांच हाथ का, सातवें और आठवें में चार हाथ का, नववें से वारहवें स्वर्ग तक में तीन-तीन हाथ का, ग्रैवेयक में दो हाथका, और अनुत्तरविमान में एक हाथ का है । पहले स्वर्ग में ३२ लाख विमान, दूसरे में २८ लाख, तीसरे • में १२ लाख, चौथे में ग्राठ लाख, पांचवें में चार लाख, छठे में पचास हज़ार, सातवें में ४० हजार, ग्राठवें से ६ हजार, नववें से, · १२ वें तक सात सौ, सात सौ, अधोवर्ती तीन ग्रैवेयक में १११, मध्यम तीन ग्रैवेयक में १०७, ऊर्ध्व तीन ग्रैवेयक में १०० और अनुत्तर में सिर्फ पांच ही विमान का परिग्रह है । : 1 : श्रभिमान श्रहिंकार को कहते हैं । स्थान, परिवार, शक्ति, विषय, विभूति, स्थिति आदि में अभिमान पैदा होता है । ऐसा .

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