________________ 943 "प्रश्नों के उत्तर :: सके हैं। भूगोल को लेकर उनमें अब भी अनेकों मत-भेद हैं। इस मत मेद के अनेकों उदाहरण उपस्थित किये जा सकते हैं। कोई विद्वान यदि सूर्य को स्थिर मानता है तो कोई उसी सूर्य को "लिए" नामक तारे की ओर प्रति घण्टा वीस हजार मील दौड़ता हुआ लिखता है। कोई सूर्य को पृथ्वी से तेरह लाख गुना और कोई पन्द्रह लाख गुना वतलाता है। अभी कुछ वर्ष पहले उत्तरी ध्रुव का पता लगाने वाले कैनेडा के एक विद्वान ने यह पता लगाया है कि वर्तमान भूगोल , में उत्तरी ध्रुव में जो 13 मील का एक गढ़ाह माना जाता है। वह ग़लत है, वहां पर उसे चौरस पृथ्वी मिली है। कोई विद्वान् कहता ' है कि पृथ्वी थाली के . समान * गोल और स्थिर है, नारंगी के समान नहीं है और धूमती नहीं है। कोई कहता है कि सूर्य एक नहीं है, अनेक हैं। आदि प्रमाणों से यह भली भांति प्रमाणित हो जाता है कि वर्तमान भूगोल और भूम्रमण का सिद्धान्त अभी निश्चिंत और असंदिग्ध नहीं है / सिद्धान्त निश्चित वही होता है जो सदा अपने . स्वरूप में स्थिर रहे, कभी हिले-चले नहीं, परिवर्तित न हो। आधुनिक भूमण्डल और आकागमण्डल सम्बन्धी सिद्धान्त अभी स्थिर नहीं कहे. जा सकते हैं। अभी तो पाश्चात्य विद्वान स्वयं ही इसका अन्वेषण समाप्त नहीं कर पाए हैं। ऐसी अवस्था में जैनदर्शन के 'भूसिद्धान्त को असत्य या अपूर्ण कैसे कहा जा सकता है ? . ... जैनसिद्धान्त की ऐसी अनेकों मान्यताएं मिलती हैं, जो पूर्व स्वीकार नहीं की जाती थीं, किन्तु अव उन्हें सहर्ष स्वीकार किया जा रहा है। जैनसिद्धान्त सदा से वनस्पति में जीवसत्ता स्वीकार * करता आया है, किन्तु जन-साधारण इस को सत्य मानने को तैयार नहीं था, और इस मान्यता को कपोल-कल्पित कहता था, किन्तु - आज विज्ञान ने इसे प्रमाणित कर दिया है / ऐसे विज्ञान जव उन्नति - / और विकास के महामन्दिर तक चरण रखेगा तो संभव है कि वह .