Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 597
________________ अठारहवां अध्याय mmmmmmmmmmmmmmmmmm पास पहुंच जाती हैं, वहां पहुंचते ही उनके हस्त आदि के स्पर्श मात्र से तीसरे, चौथे स्वर्ग के देवों की काम-तृप्ति हो जाती है। उनके शृगारसज्जित मनोहर रूप को देखने मात्र से पांचवें और छठे स्वर्ग के . देवों की लालसा पूर्ण हो जाती है। इसी तरह उनके सुन्दर संगीत-.. मय शब्द को सुनने मात्र से सातवें और पाठवें स्वर्ग के देवं वैपयिक .. आनन्द का अनुभव कर लेते हैं। देवियों की पहुंच सिर्फ पाठवें स्वर्ग तक ही है, इसके ऊपर नहीं। नववे से बारहवें तक स्वर्ग के देवों की कामसुख-तृप्ति केवल देवियों के चिन्तन मात्र से ही हो जाती है। बारहवे. स्वर्ग से ऊपर जो देव हैं, वे शान्त और काम-लालसा से रहित हो जाते हैं। इसलिए उनको देवियों के स्पर्श, रूप, शब्द या चिंतन द्वारा कामसुख भोगने की अपेक्षा नहीं रहती, फिर भी वे अन्य देवों .. से अधिक संतुष्ट और अधिक सुखी होते हैं। कारण स्पष्ट है, और . वह यह है कि ज्यों-ज्यों कामवासना की प्रबलता होती है, त्यों-त्यों ... चित्त-संक्लेश अधिक होता है, ज्यों-ज्यों चित्तसंक्लेश अधिक होता है । त्यों-त्यों उसको मिटाने के लिए विषयभोग अधिक सेवन किए जाते हैं। दूसरे स्वर्ग तक के देवों की अपेक्षा तीसरे और चौथे के देवों की, .. और उनकी अपेक्षा पांचवें और छठे के देवों की, इस तरह ऊपरऊपर के स्वर्ग के देवों की कामवासना मंद होती है, इसलिए उनके चित्तसंक्लेश की मात्रा भी कम होती जाती है। इसीलिए उनके कामभोग के साधन भी अल्प होते हैं। बारहवें स्वर्ग के ऊपर वाले देवों की कामवासना शान्त होती हैं, इस कारण उन्हें स्पर्श, रूप, शब्द, चिन्तन आदि में से किसी भी भोग की इच्छा नहीं होती। वे सन्तोप-जन्य परमसुख - में सदा निमग्न रहते हैं। यही कारण है कि नीचे-नीचे की अपेक्षा : . . ऊपर-ऊपर के देवों का सुख अधिकाधिक माना गया है। . . ... जैसे यहां राजा के यहां उमराव, पुरोहित, अंगरक्षक आदि .. लोग रहते हैं, वैसे देवलोक में इन्द्रों के यहां भी देव होते हैं, उनके

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