Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 596
________________ प्रश्नों के उत्तर ... क्रम से नव विमान ऊपर-ऊपर हैं। जो पुरुषाकृति लोक के ग्रीवा-. स्थानीय भाग में होने के कारण अवेयक कहलाते हैं। इनके ऊपर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध ये पांच विमान ऊपर-ऊपर हैं। ये सब से उत्तर-प्रधान होने के कारण अनुत्तर विमानः कहलाते हैं। सौधर्म से अच्युत तक के देवता कल्पोपपन्न और इनके ऊपर के - सभी देव कल्पातीत कहलाते हैं। कल्पोपपन्न में स्वामी, सेवक भाव है, .. पर क़ल्पातीत में नहीं है। वे तो. सभी इन्द्र के समान होने से अहमिन्द्र . कहलाते हैं। मनुष्यलोक में किसी निमित्त से जाना हो तो.. कल्पोपपन्न देव ही आते-जाते हैं । कल्पातीत देव अपने स्थान को .. छोड़ कर कहीं नहीं जाते। . पहले-दूसरे देवलोक के देवता मनुष्यों की तरह काम-भोग का . : सेवन करते हैं। तीसरे और चौथे देवलोक के देवता देवी के स्पर्शमात्र... से भली प्रकार तृप्त हो जाते हैं। पाँचवे, छठे देवलोक के देव, देवियों के सुसज्जित रूप को देखकर ही विषय-सुख-जन्य सन्तोष प्राप्त कर- लेते हैं। सातवें, पाठवें स्वर्ग के देवों की कामवासना देवियों के . विविध शब्द मात्र सुनने से शान्त हो जाती है और उन्हें विषय-सुख. के अनुभव का आनन्द मिल जाता है। नववें, दसवें, ग्यारहवें तथा बारहवें, इन चार स्वर्गों के. देवों की वैषयिक : तृप्ति केवल देवियों के चिन्तन मात्र से हो जाती है। इस तृप्ति के लिए उन्हें देवियों के न स्पर्श की, न रूप देखने की और न उन के गीत सुनने की . अपेक्षा रहती है। .... . .... ........ .. .. . देवियों की उत्पत्ति दूसरे देवलोक तक होती है, इस से ऊपर ... नहीं।पहले और दूसरे देवलोक की देवियां जब-तीसरे, चौथे आदि ऊपर के स्वर्ग में रहने वाले. देवों को विषय-सुख के लिए उत्सुक और इस . कारण अपनी ओर आदरशील जानती हैं, तभी वे ऊपर के देवों के

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