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प्रश्नों के उत्तर
सामानिक, त्रायस्त्रिश, पारिषद्य, आत्मरक्षक, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक ये भेद हैं। जो आयु में इन्द्र के के समान हों, अमात्य, पिता, गुरु आदि की भांति पूज्य हों, जिनमें केवल इन्द्रत्व नहीं होता, शेष सब इन्द्र-वैभव होता है, ऐसे इन्द्रसमान देव सामानिक कहलाते हैं । जो देव पुरोहित का काम करते हैं वे त्रायस्त्रिंश, जो मित्रों का काम करते हैं वे पारिषद्य, जो शस्त्र उठाए हुए आत्मरक्षक के रूप में पीठ की ओर खड़े रहते हैं वे आत्मरक्षक देव हैं। लोकपाल वे हैं जो सरहद की रक्षा करते हैं । जो देव सैनिक रूप में हैं, तथा अश्व, गज, रथ, वैल आदि का रूप बनाकर जो सैनिक रूप से इन्द्र के काम आते है, वे देव अनीक कहलाते हैं। जो नगर-निवासी और देशवासी के समान हैं वे प्रकीर्णक, जो दासतुल्य हैं: वे पाभियोग्य-सेवक, और जो अन्त्यज के समान हैं, उनको 'किल्विषिक कहते हैं। - देवों की उत्पत्ति उत्पादशय्या में होती है।यह देव-दूष्य (देववस्त्र) .. से ढकी रहती है। धर्मात्मा और पुण्यात्मा जीव जब इसमें उत्पन्न . होते हैं तो वह अङ्गारों पर डाली हुई रोटी के समान फूल जाती है ।। तव पास में रहे हुए देव तथा उस के अधीन देव हर्षोत्सव मनाते हैं, जय-जयकार ध्वनि से विमान को गूंजा देते हैं । अन्तर्मुहूर्त के बाद उत्पन्न हुआ देव तरुण वयं वाले मनुष्य की भांति शरीर बना कर, देवदूष्य-देववस्त्रों से शरीर को आच्छादित करके बैठ जाता है। तव पास में खड़े देव इससे प्रश्न करते हैं-आपने क्या करनी की थी जो आप ।
हमारे नाथ बने ? तब वह देव देवयोनि के स्वभाव से प्राप्त हुए । · अवधि ज्ञान. से अपने पूर्व-जन्म पर विचार करता है, और यहां के .. · मित्र आदि का विचार आते ही यहाँ पाना चाहता है तो वे देव . . कहते हैं-वहां जाकर यहाँ का क्या हाल सुनायोगे? पहले दो घड़ी ...
यहाँ के नाटक तो देख लो। तब उसे ३२ प्रकार के नाटक दिखलाए