Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 594
________________ प्रश्नों के उत्तर .... प्राप्त नहीं करेगा। . . ..... . . दुषम-सुषमा-यह पारा ४२ हजार वर्ष कम, एक कोटीकोटि सागरोपम का होता है। इस की सव स्थिति अवसर्पिणी-कालीन चौथे आरे के समान जाननी चाहिए। इसके तीन वर्ष और ८ मास व्यतीत होने के बाद प्रथम तीर्थकर का जन्म होता है। पहले। कहने के अनुसार इस बारे में २३ तीर्थकर, ११ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव और ९ वलदेव होंगे। पुद्गल की वर्ण, रस आदि पर्यायों में वृद्धि होगी। - सुषम-दुषमा-यह पारा दो कोटाकोटि सागरोपम का शुभ होगा, और सारी बातें अवपिणी के तीसरे पारे के समान होंगी। इसके भी तीन भाग होंगे, किन्तु क्रम उल्टा होगा। अवसर्पिणी . के तीसरे भाग के समान इस बारे का प्रथम भाग होगा। इस बारे में श्री ऋषभदेव के समान चौवीसवें तीर्थंकर होंगे। ... १२ वां चक्रवर्ती होगा, करोड़ पूर्व का समय हो जाने के - बाद कल्पवृक्षों की उत्पत्ति होने लगती है । उन्हीं से मनुष्यों और पशुओं की इच्छाएं पूर्ण होंगी। तव असि, मसि और कृषि के धन्धे समाप्त होंगे और युगधर्म चालू होगा। इस प्रकार चतुर्थ पारे में ... सब मनुष्य अकर्म-भूमि बन जाएगे। .... सुषमा-तीन कोटाकोटि सागरोपम का यह पांचवाँ पारा. है। इस का समस्त वृत्तान्त अवसर्पिणी काल के दूसरे आरे के समान है। वर्ण, रस, गन्ध आदि की उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली जाएगी। : . सुषम-सुषमा-यह पारा चार: कोटा-कोटि सागरोपम का है। इस का विवरण अवसर्पिणी कालीन प्रथम आरे के समान जान लेना चाहिए।... .. इस प्रकार दस कोटाकोटि सागरोपम का अवसर्पिणी काल

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