Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 591
________________ अठारहवां अध्याय .: ९२८ . पूर्वापेक्षया वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श की उत्तमता में कमी आ जाती है। दिन में दो बार आहार की इच्छा पैदा होती है। इस बारे में. निम्नोक्त १० वातों का अभाव हो जाता है १-केवल ज्ञान, २-मन:पर्यवज्ञान ३-परमावधिज्ञान ४-परिहारविशुद्धि, ५-सूक्ष्मसम्पराय, ६ यथाख्यात... ७-पुलाकलन्धि, ८-आहारक शरीर, क्षायिक . सम्यक्त्व, . १०-जिनकल्पी मुनिक।.... इस बारे में जन्मा कोई भी जीव मुक्ति नहीं पा., सकता। पर चतुर्थ ारे में जन्मे मनुष्य को इस बारे में केवल-ज्ञान हो . सकता है, ऐसा व्यक्ति मुक्ति भी प्राप्त करता है। जैसे जम्बूस्वामी ।' यह पारा दुःख-प्रधान है, इसलिए इस का नाम दुषमा रखा गया है। . इस आरे के अन्त में सभी धर्मों का विच्छेद हो जाएगा, राजनीति, . 'धर्मनीति आदि सव नीतियां समाप्त हो जाएँगी । बादर (स्थूल) अग्नि भी उस समय समाप्त हो जायगी। .. . दुषमदुषमा-यह पारा भी. २१ हजार वर्षों का होता है। यह काल मनुष्यों और पशुओं के. दु:ख-जनित हाहाकार से व्याप्त . होगा। इस आरे के प्रारम्भ में धूलिमय भयंकर आंधियां चलेंगी, दिशाएं धूलि से भर जाएंगी। सर्वत्र अंधकार छा जायगा। मेघ : " प्राग, विष आदि प्राणनाशक पदार्थों की वर्षा करेंगे। प्रलय-कालीन पवन और वर्षा के प्रभाव से विविध वनस्पतियां और त्रस प्राणी .... नष्ट हो जाएंगे । पहाड़ और नगर पृथ्वी से मिल जाएंगे। पर्वतों में ... एक वैताठ्य पर्वत ही बचेगा । नदियों में गंगा और सिंधु शेष रहेंगी। . काल के अत्यन्त. रुक्ष होने से सूर्य खूव तपेगा, चंद्रमा अति शीत .. होगा। भरतक्षेत्र की भूमि अंगार और तपे हुए तव के समान बन.. .. * इन दसों का शाब्दिक अर्थ- पृष्ठ ६७६ पर लिखा जा चुका है।

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