Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 589
________________ अठारहवां अध्याय ९२६ - .. कहा जाता है । अतः इस चतुर्विध तीर्थ की अर्थात् संघ की स्थापना .. करने वाले भी तीर्थंकर कहलाते हैं। इस अवसर्पिणी काल में २४.. तीर्थंकर माने जाते हैं। पहले तीर्थकर भगवान ऋषभदेव थे, इनका वर्णन पूर्व कर दिया गया है। शेष २३ तीर्थंकरों के नाम निम्नोक्त हैं१ श्री अजितनाथ, २ श्री संभवनाथ, ३ श्री अभिनंदन, ४ ,, सुमतिनाथ, ५, पद्मप्रभ, .. ६, सुपार्श्वनाथ, ७ ,, चन्द्रप्रभ, ८ ,, सुविधिनाथ, ९ ,, शीतलनाथ, १० ,, श्रेयांस, ११ ,, वासुपूज्य, १२.,, विमलनाथ १३ ,, अनंतनाथ, १४ ,, धर्मनाथ, ..१५,, शान्तिनाथ, १६ , कुन्थुनाथ, १७ ,, अरहनाथ, १८, मल्लिनाथ, . १९ । मुनिसुव्रत, २० , नमिनाथ, २१ , अरिष्टनेमि, २२ ,, पार्श्वनाथ, २३ , महावीर स्वामी ............. वर्तमान अवसर्पिणी काल के तीन आरे. व्यतीत हो चुके थे, .. चौथे आरे का भी अधिकांश भाग बीत चुका था; उसके अवशेष होने में केवल ७४ वर्ष ११ मास. ७१ रात दिन बाकी थे। महावीरस्वामी : का जन्म इसी समय हुआ था । चतुर्थ पारा समाप्त होने में जब तीन वर्ष और चार मास शेष रहते थे, तब भगवान महावीर का निर्वाण ... ... हो गया था। ..... चक्रवर्ती १२ होते हैं। इन का नाम-निर्देश पहले किया जा चुका ... है। वासुदेव ९ होते हैं। वासुदेव पूर्व भव में निर्मल तप, संयम का ... . . पालन करके निदान (नियाणा) करते हैं। आयु पूर्ण होने पर ये :: अवतारी पुरुप एक भव करके. उत्तम कुल में अवतरित होते है । वासुदेव के पद की प्राप्ति के समय सुदर्शनचक्र, अमोघ खड्ग, कौमुदी .

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