Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 587
________________ अठारहवां अध्याय सम्बन्धी तथा कुम्भकार आदि के शिल्प-सम्बन्धी होती है। ७-महाकाल-निधि--इससे स्वर्ण आदि धातुओं की, वरतनों की और नक़द धन की प्राप्ति होती है। ८-मारगवड-निधि-इस से सर्व प्रकार के शस्त्र-अस्त्रों की .. प्राप्ति होती है। ९-शंखनिधि-इससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साधन । वतलाने वाले शास्त्र तथा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, संकीर्ण, पद्यरूप शास्त्रों और सर्व प्रकार के वादित्रों की प्राप्ति होती है। .. - चक्रवर्ती महाराज का छ: खण्डों में निष्कण्टक राज्य होता है, ३२ हज़ार मुकुटधारी राजा इनके सेवक होते हैं। ६४ हजार रानियां .. होती हैं । ८४ लाख हाथी, ८४ लाख घोड़े आदि और भी बहुत सा . वैभव चक्रवर्ती का होता है। इस वैभव का यदि त्यांग करके चक्रवर्ती . संयम धारण करले तव तो मोक्ष या स्वर्ग को प्राप्त करता है । अन्यथा राज्य का उपभोग करते-करते यदि मृत्यु को प्राप्त हो तो वह नरक में जाता है। इस अवसर्पिणी काल में १२. चक्रवर्ती माने जाते हैं, जो ... भिन्न-भिन्न तीर्थंकरों के काल में पैदा हुए थे। उनके नाम निम्नोक्त हैं१-भरत, २-संगर, ३-माधव, ४-सनत्कुमार . . ५-शान्तिनाथ, ६-कुन्थुनाथ, ७-अरनाथ, ८-सम्भूम ९-महापद्म १०-हरिपेण ११-जयसेन १२-ब्रह्मदत्त ... ... इनमें शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ ये तीनों महापुरुप. चक्रवर्ती भी थे और तीर्थंकर भी। .. दुषमसुषमा-यह ारा ४२ हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सागरोपम का होता है, इसमें दुःख ज्यादा और सुख अल्प होता है। पूर्वापेक्षया वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श की उत्तमता में कमी आ जाती .

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