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श्रठाहरवां ग्रध्याय
गिरने के पश्चात् नारकीय जीव का शरीर फूल जाता है, शरीर फूल जाने के कारण वह उस में बुरी तरह फंस जाता है। कुम्भी की तीखी चारें उस के चारों और चुभती है और नारकीय जीव वेदना से तिलमिलाने लगता है । उस समय परमाथामिक देव उसे चिमटे से या संडासी से पकड़ कर खींचते हैं, नारकीय जीव के शरीर के टुकड़े बनाकर वहां से उसे निकालते हैं। इससे नारकीय जीव को घोर वेदना तो होती है, मगर वह मरता नहीं। नारकीय जीव के शरीर के वे टुकड़े पारे की तरह मिल जाते हैं और फिर जैसे को तैसा शरीर वन जाता है ।
तीसरे नरक तक तो परमाथामिक देव नारकियों को कुंभी से निकाल लेते हैं । शेष नरकों में जो कुम्भियां है, इन में नारकीय स्वयं ही एक दूसरे को निकालते हैं, स्वयं ही एक दूसरे की मारपीट करके एक दूसरे को पीड़ित करते हैं। वैसे तो सभी नरकों में · वेदनाओं का जाल बिछा हुआ है, किन्तु वेदनाओं में तीव्रता श्रागेग्रागे बढ़ती जाती है । सब से कम वेदना पहले नरक में और सर्वाधिक वेदना सातवें नरक में होती है ।
रत्न-प्रभा नरक के निवासी नारकियों की जवन्य (कम से कम) स्थिति दस हज़ार वर्ष की है, और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) एक सागरोपम । शर्करा प्रभा के नारकियों को जघन्य स्थिति एक सागरोपम की होती हैं और उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की । इसी प्रकार तीसरे नरक की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम, चौथे नरक की जघन्य स्थिति सात और उत्कृष्ट दस, पांचवें नरक की जघन्य दस ग्रौर उत्कृष्ट १७, छठे की जघन्य स्थिति १७ और उत्कृष्ट २२, तथा सातवें नरक की
* सागरोपम की व्याख्या पीछे पृष्ठ ६४७ पर की जा चुकी है।