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प्रश्नों के उत्तर
~~~irem.in.. राज्य भोग कर इन्हों ने दीक्षा ली। एक वर्ष छद्मस्थ रहे। एक वर्ष कम एक लाख पूर्व केवलो रहे, ८४ लाख पूर्व की आयु पूर्ण होने - पर निर्वाण पद प्राप्त किया । ....... .
प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के समय राजकुल में . चक्रवर्ती का जन्म हो जाता है। चक्रवर्ती की माता १४. स्वप्न देखती -- है। इसके १४ रत्न और ९ निधियां होती हैं। १४ रत्नों में से चक्र, . . . छत्र, दण्ड, खड्ग, मणि, कांगनी और चर्म ये सात एकेन्द्रिय रत्न और
सेनापति, गाथापति, वर्धकि, पुरोहित, स्त्री, अश्व और गज ये सात . .: पञ्चेन्द्रिय रत्न होते हैं। उक्त रत्नों का अर्थ इस प्रकार है.......१-चक्ररत्न-यह सेना के आगे-आगे आकाश में 'गरंणांट' : ... शब्द करता हुआ चलता है, और छः खण्ड साधने का रास्ता बतलाता
......२-छत्ररत्न-यह सेना के ऊपर १२ योजन लम्बे, ८ योजन
चौड़े. छत्र के रूप में परिणत हो जाता है । शीत; ताप, वायु आदि के उपसर्ग से रक्षा करता है। . . ... ... ... ... . .
३-दण्ड-रत्न-यह विषमस्थान को सम करके सड़क जैसा मार्ग बना देता है । वैताढ्य पर्वत की दोनों गुफाओं के द्वार खुले ।
करता है। :: :: ... ... .. . ... ... . ...... ४.-खड्गरत्न-यह पचास · अंगुल लम्बा, सोलह अंगुल... : . चौड़ा, आधा अंगुल मोटा एवं अत्यन्त तीक्ष्ण धार वाला होता है। ... - हज़ारों कोसों की दूरी पर स्थित शत्रुओं का सिर काट सकता है। .... .. ये उक्त चारों रत्न चक्रवर्ती की प्रायुधशाला में उत्पन्न होते हैं। ..... ...... ५-मरिण-रत्न-यह चार अंगुल लम्बा और दो अंगुल चौड़ा, .
होता है। इसे ऊँचे स्थान पर रख देने से दो योजन तक चन्द्रमा के समान प्रकाश फैल जाता है। हाथी के मस्तक पर रखने से सवार सर्वथा निर्भय हो जाता है। .