Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 583
________________ अठारहवां अध्याय नीति प्रचलित थी। जव कोई मनुष्य कोई अपराध करता था तो उसे कुलकर "हा" ऐसा शब्द कहकर उसके कुकृत्य पर खेद प्रकट किया करता था। अपराधी के लिए इतना दण्ड ही पर्याप्त होता था। . इससे वह लज्जित हो जाता था, इसके आगे के पांच कुलकरों तक "मा” की दण्डनीति चलती रही। मा का अर्थ है 'मत'। ऐसा मत करो, इस प्रकार कह देना ही अपराधी के लिए काफी था। इससे आगे के कुलकरों के समय में दण्ड को कुछ कठोर बनाया गया। उस समय अपराधी को "धिक्" शब्द का दण्ड दिया जाता था। इस दण्ड से ही लज्जित होकर उस युग के लोग अपराध से विरत हो जाते थे। ___ जव अवसर्पिणी काल का तीसरा पारा समाप्त होने में चौरासी लाख पूर्व; तीन वर्ष और महीने शेष रह जाते हैं, तव अयोध्या · नगरी में महामहिम भगवान ऋषभदेव का जन्म होता है। .. ये चौदहवें · कुलकर नाभि के पुत्र थे । इन को माता का नाम . : मरुदेवी था। इस अवसपिणी काल के ये प्रथम राजा; प्रथम जिन, . ' प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर और प्रथम ही धर्मचक्रवर्ती थे। इन . · की आयु ८४ लाख पूर्वी को थी। इन्हों ने वीस लाख पूर्व वर्ष कुमारावस्था में व्यतीत किए और ६३ लाख पूर्व तक वर्ष राज्य .. · किया, अपने शासनकाल में प्रजाहित के लिए इन्हों ने लेख, गणित . "आदि ७२ पुरुषकलाओं और ६४ स्त्रीकलाओं का उपदेश दिया। .. इसी प्रकार जनता को १०० शिल्पों, असि (युद्ध), मसि (व्यापार) : ..और कृपिः (खेती) इन तीन कर्मों की शिक्षा दी। ६३ लाख पूर्व . ..:.. ७० लाख, ५६ हजार वर्ष को एक करोड़ से गुणा करने पर . ७०,५६,००००,००००.०० वर्षों का एक पूर्व होता है। . - . ७२ कलात्रों के संक्षिप्त स्वरूप के जिज्ञासुत्रों को मेरे द्वारा अनुवादित . : . विपांकसूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के द्वितीय अध्ययन को देखना चाहिए।

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