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सतरहवां अध्याय
९१८ marrrrrrrrrr .. rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr से व्यवहृत किया जाता है। वे निम्नोक्त हैं१-सुषम-सुषमा, २-सुपमा, ३-सुषम-दुषमा, ४-दुषम-सुषमा, ५-दुषमा, ... ६-दुषम-दुषमा
सुषमसुषमा-इस बारे में शरीर बड़े बलवान और प्रशस्त. डीलडौल वाले होते हैं। मनुष्यों का सौन्दर्य विलक्षण और स्वभाव . सरल तथा नम्र होता है। एक साथ ही स्त्री और पुरुष पैदा होते हैं अर्थात् युगल-जोड़ा पैदा होता है। युगल रूप से उत्पन्न होने के कारण . इन्हें युगलिया कहा जाता है। जव युगल की आयु १५ मास शेप रहती है तो उस समय वेदमोहनीय कर्म का तीव्र उदय होने से. दोनों का सम्बन्ध होता है, और नारी गर्भ धारण करती है, इस से पहले वे भाई-बहिन की तरह ब्रह्मचर्य-पूर्वक रहते हैं। युगलिनी के , गर्भ से युगल ही उत्पन्न होता है। केवल ४९ दिनों तक नवजात युगल का पालनपोषण करना होता है। इतने दिनों में वे होशियार और स्वालम्वी हो जाते हैं । युगल के माता-पिता मरण समय निकट आने . पर एक को छींक और दूसरे को जंभाई आने से मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । युगलियों की गति देव-लोक की होती है। उस क्षेत्र के अधिष्ठाता देव युगल के मृतक शरीर का क्षीर-समुद्र में ले जाकर . प्रक्षेप कर देते हैं।
तीन-तीन दिनों के अन्तर से युगलियों को भूख लगती है। इन की इच्छाएं दस प्रकार के कल्पवृक्षों से पूर्ण हो जाती हैं। इस बारे में पृथ्वी का स्वाद मिश्री से भी अधिक स्वादिष्ट होता है। पुष्प और फलों का स्वाद चक्रवर्ती के श्रेष्ठ भोजन से भी बढ़ कर. होता है। भूमि-भाग अत्यन्त रमणीय विविध वृक्षों और पौधों से सुशोभित होता है। सब प्रकार के सुखों से पूर्ण होने के कारण इस : आरे को सुषमसुषमा कहा जाता है । यह पारा चार कोडा-कोड़ी.