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अठारहवां अध्याय
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हैं। काल-विभाग अढ़ाई हीप में ही है, इससे बाहिर नहीं है। ज्योतिष्क देवों की गति के आधार पर ही कालविभाग मा करता ... है। अढ़ाई-वीप में ज्योतिष्क देवों के प्रमशीन होने से .... काल-विभाग होता है। इससे बाहिर उनके स्थिर रहन से कालविभाग नहीं होता।
___ जम्बूद्वीप में २ चन्द्र, २.सूर्य हैं। लवण समुद्र में । चन्द्र और ४ सूर्य हैं। पातकीखण्डद्वीप में १२ चन्द्र और १२ सूर्य होते है। इसी प्रकार आगे भी किसी विवक्षित होप या नमुद्र की चन्द्र-संख्या या सूर्य-संख्या तिगुनी करके पिछले द्वीपसमुद्रों की चन्द्र-संख्या या..' सूर्य-संख्या के जोड़ देने से किसी भी द्वीप और समुद्र के चन्द्रों या. सूर्यो की संख्या मालूम की जा सकती है। . ..
एक-एक चन्द्र का परिवार २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह और ध्यानठ. हजार ९ सौ पचहत्तर कोटाकोटी तारों का है। नक्षत्र और ग्रहों का विवरण "सूर्यप्राप्ति" तथा "चन्द्रप्राप्ति" नामक सूत्र में देख लेना . चाहिए। वैसे तो लोकमर्यादा के स्वभाव से ही सूर्य, चन्द्र आदि विमानों की स्वाभाविक गति होती है, और उसी गति से चलते
हैं, तथापि क्रीड़ादील सेवक देव भक्तिवन उनके साथ रहते हैं, या । उनको उठाते हैं । सूर्य के विमान को १६००० देव उठाते हैं। चन्द्र __ . के विमान को भी १६०० देव उठाते हैं। तारा के विमान को दो .. __.. हजार देवता और नक्षत्र विमान को चार हजार देवता तथा ग्रहों .. के विमानों को ८ हजार देव उठाए फिरते हैं।
समय, प्रावलिका, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास आदि अतीत, वर्तमान और अनागत तथा संख्येय, असंख्येय, प्रादि रूप से ... अनेक प्रकार का कालव्यवहार मनुष्यलोक में होता है। इसके ,
वाहिर नहीं। मनुष्यलोक के वाहिर यदि कोई कालव्यवहार करने वाला हो और ऐसा व्यवहार करे तो वह मनुण्यलोक