Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 578
________________ प्रश्नों के उत्तर ... wrrrrrrrrrrrr.. अलोक है। ............. ....... ...... - ज्योतिष्मण्डल- . ....मेरु के समतल भूभाग से सात सौ नव्वे योजन की ऊंचाई पर ज्योतिश्चक्र के क्षेत्र का प्रारंभ होता है, जो वहां से एक सौ दस योजन परिमाण और तिरछा असंख्यात द्वीप परिमाण है। उस में दस योजन की ऊंचाई पर (मेरुपर्वत के समतल से आठ सौ योजन की ऊंचाई पर) सूर्य का विमान है। वहां से ८० योजन की ऊंचाई पर चन्द्र का विमान है। वहां से २० योजन की ऊंचाई तक ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्ण तारे हैं। प्रकीर्ण तारे का मतलब यह है कि ... अन्य कुछ तारे जो अनियतचारी होने से कभी सूर्य, चन्द्र के नीचे ....... भी चलते हैं और कभी ऊपर । चन्द्र के ऊपर बीस योजन की ऊँचाई . में पहले चार योजन की ऊँचाई पर नक्षत्र हैं। इसके बाद चार योजन... की ऊँचाई पर बुधग्रह, वुध से तीन योजन ऊँचे शुक्र, शुक्रः से तीन । योजन ऊँचे गुरु, गुरु से तीन योजन ऊँचे मंगल, और मंगल से तीन :: योजन ऊँचे शनैश्चर है। अनियतचारी तारा जव सूर्य के नीचे . चलता है, तव वह सूर्य के नीचे दस योजन प्रमाण ज्योतिष-क्षेत्र में चलता है । ज्योतिष-प्रकाशमान विमान में रहने के कारण सूर्य आदि . .. ज्योतिष्क कहलाते हैं। इन सब के मुकुटों में प्रभामण्डल का सा... उज्ज्वल सूर्य आदि के मण्डल जैसा चिन्ह होता है। सूर्य के सूर्यमण्डल का सा, चन्द्र के चन्द्रमण्डल का सा, और तारा के तारामण्डल का सा चिन्ह समझना चाहिए।.. ..... . : . . मनुष्य-लोक में जो ज्योतिष्क हैं, वे सदा भ्रमण किया करते हैं, - . इन का भ्रमणं मेरु-पर्वत के चारों ओर होता है। अढाई द्वीप से बाहिर : जो सूर्य, चन्द्र हैं, वे सदैव स्थिर रहते हैं। उनके के विमान स्वभाव ... से ही एक जगह स्थिर रहते हैं, इधर से उधर भ्रमण नहीं करते

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