Book Title: Prashno Ke Uttar Part 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 570
________________ - ९०७. प्रश्नों के उत्तर :: की भाँति देखने में प्रायः सुन्दर, मनोहर तथा सुकुमार होते हैं, और मृदु व मधुर गति वाले तथा क्रीड़ाशील होते हैं । दसों प्रकार के भवनपतियों की शरीरगत चिन्हादि स्वरूप सम्पत्ति जन्म से ही अपनी-अपनी जाति में जुदा जुदा है । १- असुर- कुमारों के मुकुट में चूड़ामणि का चिन्ह होता है, २- नागकुमार के मुकुट में नाग का, ३ - सुवर्णकुमारों के गरुड़ का, ४ - विद्युत्कुमारों के वज्र का, ५ ग्निकुमारों के घट का, ६ - द्वीपकुमारों के सिंह का, ७ -- उदधिकुमारों के मकर का, ८ दिक्कुमारों के हस्ती का, १०स्तनितकुमारों के शराव युगल का चिन्ह होता है । नागकुमार यदि सभी देवों के चिन्ह उनके अपने ग्राभरणों में होते हैं । सभी के वस्त्र, शस्त्र, भूषण आदि भी विवध प्रकार के होते हैं । C 3 1 मध्यलोक - श्रधोलोक में सात नरक हैं और १० प्रकार के भवनपति देवता पाए जाते हैं । ग्रधोलोक से ऊपर मध्यलोक है । उस का प्रारम्भ रत्नप्रभा नरक के ऊपर के ९ सौ योजन पृथ्वी- पिण्ड से चालू हो जाता है । रत्नप्रभा नरक के ऊपर एक हज़ार योजन का पृथ्वी. पिण्ड है, उसमें से एक सौ योजन ऊपर और एक सौ योजन नीचे छोड़ कर बीच में ८०० योजन योजन की पोलार है । इस पोलार में आठ प्रकार के व्यन्तरदेव रहते हैं । उनके नाम निम्नोक्त हैं १ - पिशाच, २- भूत, ६- किंपुरुष, ५ - किन्नर, ४- राक्षस, ३- यक्ष, ७- महोरग, ८- गन्धर्व, व्यन्तरदेव चंचल स्वभाव के होते हैं वे अपनी इच्छा से या दूसरों की प्रेरणा से भिन्न-भिन्न जगह जाया करते हैं । उनमें कई - एक तो मनुष्यों की सेवा करते हैं और रुष्ट होने पर कई एक उनके दुःखों का कारण भी वन जाते हैं । वे विविध प्रकार के

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