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प्रश्नों के उत्तर ~~~~~~~~~~~~~~~ दक्षिण की ओर है, भरत से उत्तर की ओर हैमवत, हैमवत से उत्तर में हरि, हरि से उत्तर में विदेह, विदेह से उत्तर में रम्यक, रम्यक से उत्तर में हैरण्यवत और हैरण्यवत से उत्तर में ऐरावत क्षेत्र है। इन सांतों क्षेत्रों को एक दूसरे से अलग करने वाले उनके बीच छ: पर्वत है, जो वर्षधर कहलाते हैं। वे सभी पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा तक लम्वे हैं। भरत और हैमवत क्षेत्र के मध्य में हिमवान पर्वत है। हैमवत और हरिवर्ष का विभाजक महाहिमवान पर्वत है। हरिवर्ष और विदेह को जुदा करने वाला निषधपर्वत है। विदेह और रम्यक को भिन्न करने वाला नीलपर्वत है । रम्यक और हैरण्यवत को विभक्त करने वाला रुक्मी पर्वत है। हैरण्यवत और ऐरावत के बीच विभाग करने वाला शिखरी पर्वत है। . - मेरुपर्वत से दक्षिण में निषधपर्वत के पास उत्तर में अर्धचन्द्राकार देवकुरु क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ८! योजन ऊंचा रत्नमय जम्बू नाम का एक वृक्ष है। इस पर जम्बूवृक्ष का अधिष्ठाता महान् ऋद्धि का धारक अणढी नाम का देवता रहता है। मेरुपर्वत के उत्तर में नीलवन्त पर्वत के पास दक्षिण में देवकुरुक्षेत्र के समान उत्तर कुरुक्षेत्र
विदेह का ही दूसरा नाम महा-विदेह है। मेरु पर्वत से पूर्व और पश्चिम .' में यह क्षेत्र है । इसके बीचों बीच मेरु पर्वत के आ जाने से इसके दो विभाग हो
जाते हैं पूर्व महा-विदेह और पश्चिम महा-विदेह । पूर्व महा-विदेह के मध्य में सीता नदी और पश्चिम महा-विदेह के मध्य में सीतोदा नाम की नदी के आ जाने से एक-एक के फिर दो विभाग हो जोते हैं । इस प्रकार इस क्षेत्र के चार विभाग वन जाते हैं। इन चारों विभागों में आठ-आठ विजय (क्षेत्र-विशेष) हैं। ये ८४४-३२ होने से महाविदेह में ३२ विजय पाई जाती है। इस क्षेत्र में सदैव चौथे आरे. जैसी स्थिति रहती है।