________________
मठाहरवां ग्रध्याय
petere a path in by my b
ܘ
पहाड़ और गुफाओं तथा वनों के प्रन्तरों में बसने के कारण व्यन्तर
कहलाते हैं । मनुष्य-लोक
रत्न-प्रभा पृथिवी की छत पर मनुष्य लोक है। इसके मध्य में मेरुपर्वत है। इसकी ऊँचाई एक लाख योजन की है, जिसमें एक हज़ार योजन जितना भाग भूमि में है और ९९००० हजार योजन प्रमाण भाग भूमि के ऊपर है । मेरुपर्वत तीनों लोकों का अवगाहन कर रहा है और भद्रशाल, नन्दन, सौमनस तथा पाण्डुक इन चार वनों से घिरा हुआ है । मेरु के तीन काण्ड हैं । पहला काण्ड हजार योजन प्रमाण है जो जमीन में है । दूसरा ६३ हजार योजन और तीसरा ३६ हजार योजन प्रमाण है। पहले काण्ड में शुद्ध पृथिवी तथा कंकर ग्रादि की बहुलता है, दूसरे में चांदी, स्फटिक यादि की और तीसरे में सोने की प्रचुरता पाई जाती है ।
जम्बूदीप
मेरु पर्वत के चारों ओर थाली के आकार का पूर्व से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक एक लाख योजन का जम्बूद्वीप है । इसमें नेकों क्षेत्र पाए जाते हैं, जिन में पहला * भरत है, जो मेरुपर्वत से
*जम्बू द्वीप में मेरु पर्वत से ८५००० योजन दक्षिण दिशा में भरत क्षेत्र है, . इसके मध्य में वैतान्य पर्वत है । यह पर्वत भरत क्षेत्र को दो भागों में बांट देता है । एक दक्षिणार्ध मरत और दूसरा उत्तरार्ध भरत । उत्तर दिशा में भरत क्षेत्र की सीमा पर चुल्लहिमवान पर्वत है, वहां पद्म नाम का एक ग्रह (तालाब) है। इसके पूर्व द्वार से गंगा और पश्चिम द्वार से सिधु नाम की दो नदियां तव्यपर्वत के नीचे हो कर निकलती हैं और अन्त में लवण समुद्र में जा मिलती हैं । इस प्रकार ताव्यपर्वत गंगा एवं सिंधु नदी के कारण भरतक्षेत्र के छः माग हो जाते हैं । इन्ही भागों को पट्खण्ड कहते हैं । चक्रवर्ती का राज्य इन्हीं पट्खण्डों में होता है ।