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प्रश्नों के उत्तर. .. . . . . ~~~rmmmmmmmmmmmmmmmmm mmmmmmmmm - करने के लिए तत्पर हो जाता है । युद्धकाल. से लेकर आज तक ... चला आ रहा चोर बाज़ार इस तथ्य की प्रामाणिकता के लिए. . पर्याप्त उदाहरण है। अतः राजनीति..और. व्यक्तिगत जीवन में
यदि अहिंसा को अपना लिया जावे तो राजा और प्रजा दोनों शान्ति से रह सकते हैं.। . .. . ... .. ... ... .. ... ... ... ...... ..हिंसा, और विनाशकता, अधिकारलिप्सा और असहिष्णुता, ..
सत्तालोलुपता और स्वार्थान्धता से आकुल-व्याकुल संसार में अहिंसा ..' ही सर्वश्रेष्ठ, अमृतमय, विश्रामभूमि है, जहां पहुंच कर मनुष्य
आराम का सांस लेता है, अपने और दूसरों को समान धरातल : . पर देखने के लिए अहिंसा की आंख का होना नितान्त आवश्यक है।
अहिंसा न होती तो मनुष्य न अपने को पहिचानता, और न दूसरों .. को ही,। पशुत्व से ऊपर उठने के लिए अहिंसा का आलम्बन ..
अत्यावश्यक है। संसार भर के प्राणियों को अपनी आत्मा के समान समझना अहिंसा है.। जिस दिन, जिस घड़ी मनुष्य अपने अन्दर जो जीने का अधिकार लेकर बैठा है, वही जीने का अधिकार
सहज भावों से दूसरों को दे देता है, दूसरों की जिन्दगियों को अपनी : जिन्दगी के समान देख लेता है, और संसार के सव प्राणी उसकी
भावना में उसकी अपनी आत्मा के समान बन जाते हैं, और सारे - संसार को समान दृष्टि से देखने लगता है। वह यह समझने
लग जाता है कि ये सब प्राणी मेरे ही समान हैं, इन में और मुझ .. में कोई मौलिक अन्तर नहीं है। जो चीज़ मुझे प्यारी है वही औरों
को भी प्यारी और पसंद है। उसी दिन और उसी घड़ी उस मनुष्य में अहिंसा की प्रतिष्ठा हो जाती है। अहिंसा उसके मनमन्दिर में अपना आसन जमा लेती है। ...... अहिंसा से सम्बन्ध में जैनेतर दर्शनों ने भी बहुत कुछ कहा है किन्तु जैन-धर्म की अहिंसा सर्वोपरि है। वैदिक दर्शन में ‘मा हिंस्यात्