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लोक-स्वरूप
अठाहरवां अध्याय
प्रश्न – यह दृश्यमान या अदृश्यमान संसार क्या चीज़ है ? इसका क्या स्वरूप है ?
उत्तर- धर्म, ग्रधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव इन छः पदार्थों का सामूहिक नाम ही संसार, जगत, सृष्टि या लोक है । जैन परिभाषा में इन छहों को पंड्-द्रव्य कहते हैं । और यह लोक पड़द्रव्यात्मक कहा जाता है । हिलने, चलने वाले पदार्थों को हिलने चलने में सहायता देने वाले द्रव्य का नाम धर्म है । ठहरने वाले पदार्थों को ठहरने में मदद करने वाले द्रव्य का नाम अधर्म है । सव पदार्थों के आधार भूत द्रव्य को ग्राकाश कहा जाता है । जो जीव, अजीव पर वरतता है, और उन पदार्थों की नवीन, पुरातन आदि अवस्थाओं के परिवर्तन में सहायक होता है, उस को काल कहते हैं । समय, घड़ी, दिन, मास, युग आदि इसो के विभाग हैं । स्पर्श, रस, गन्ध और रूप वाले द्रव्य को पुद्गल कहते हैं । शब्द, धूप, छाया, अन्धकार, प्रकाश आदि भी पुद्गलमय ही हैं । जिस में चेतना शक्ति हो वह जीवद्रव्य है । ये छहों द्रव्य अनादि ग्रनन्त हैं, अर्थात् कभी वने नहीं और कभी नष्ट नहीं होंगे, सदा थे और सदा रहेंगे । इसीलिए जैनदर्शन कहता है कि पद्रव्यात्मक संसार किसी का बनाया हुया न हो कर स्वाभाविक है, और अनादि, अनन्त है ।
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प्रश्न क्या इस संसार का कभी नाश नहीं होता है ? उत्तर - संसार की अवस्थाएं वदली रहती हैं, किन्तु छहों