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प्रश्नों के उत्तर
मार। इस प्रकार ईसाई ग्रन्थों में अहिंसा का वर्णन मिलता है । हज़रत ईसा मसीह ने यहां तक कहा है कि "यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर चपत मारता है तो तुम अपना दूसरा गाल उस के सामनेकर दो ।" "किन्तु ईसाई धर्म की यह हिंसा मानव जीवन तक, सीमित है । ईसा की अहिंसा की छाया पशु जगत तक नहीं पहुंचती है । ईसा स्वयं जीवित मछलियों को अपने भक्तों को खिलाते हुए यह नहीं सोचते कि इन हतभाग्य जीवों के मारे जाने पर इन्हें प्राणान्त व्यथा होगी ।
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इस प्रकार कुछ लोगों ने अहिंसा को केवल मनुष्य जाति तक सीमित कर दिया और कोई उसे आगे ले गया तो वह पशुश्र पक्षियों तक सीमित हो गई, किन्तु जन धर्म की अहिंसा में ऐसी कोई मर्यादा नहीं है। जैन अहिंसा के विशाल प्रांगण में विश्व के समस्तःचराचर जीवों का समावेश होता है, उसमें त्रस, स्थावर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, [त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति के सभी जीव सुरक्षा का वरदान पाते हैं। कीड़े मकौड़े, च्यूंटी, मक्खी, गाय, भैंस, घोड़ा, वंदर यादि सभी तिर्यञ्च प्राणी सानंद विहरण करते हैं, किसी को किसी भी प्रकार की कोई बाधा या व्यथा नहीं पहुंचने : पाती । मनुष्य जीवन के संरक्षण का तो वहां विशेष ध्यान रख। जाता है, क्योंकि प्राणियों में मनुष्य का सर्वोपरि स्थान है । आचारविचार की दृष्टि से जितना मनुष्य पूर्ण है या हो सकता है, उतना कोई ग्रन्य प्राणी नहीं । ग्रतः अन्य सभी जीवनों में मनुष्य जीवन को प्रधान और दुर्लभ स्वीकार किया गया है। ऐसे अनमोल मानव-जीवन की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है-अहिंसा के प्रांगण में | जैन-हिंसा का प्रांगण जितना विशाल है, इतना किसी अन्य धर्म की अहिंसा का नहीं हैं । जैन धर्म की ग्रहिंसा प्रकाश की भांति असीम है, आत्मा की तरह सूक्ष्म है और काल की तरह
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