________________
प्रश्नों के उत्तर
....... ................. minnan aranan इतना तो नहीं भूलता कि मैं बुरा कर्म कर रहा हूं। बुराई को बुराई समझना भी अहिंसा की ओर बढ़ना है। जो वुराई को बुराई जान लेता है, वह समय आने पर कभी-न-कभी बुराई को छोड़ भीदेता है। बुराई को बुराई के रूप में समझना और अन्त में उस को जीवन । . से निकलवा देना ही अहिंसा का अपना ध्येय होता है। ...... . अहिंसा पर कुछ अाक्षेप किए जाते हैं। कहा जाता है कि अहिंसा .. . सिद्धान्त इतना सूक्ष्म है, और इस की मर्यादा इतनी बढ़ा दी गई है।
कि वह व्यवहार की वस्तु नहीं रहो। जैन-अहिंसा का पालन किया । जाए तो जीवन के समस्त व्यापार बंद कर देने पड़ेंगे, समस्त क्रियाएं समाप्त करनी होंगी, और निश्चेष्ट हो कर देह का ही परित्याग
कर देना होगा। उनका विश्वास है कि जीवन-व्यवहार चलाना ___ और अहिंसा का पालन करना, ये दोनों वातें परस्पर विरुद्ध हैं।
इन दोनों बातों का एक दूसरे से मेल नहीं है। या तो मनुष्य इस ... अहिंसा की उपेक्षा करके जीवन चलावे या फिर अहिंसा के यज्ञ में . - अपने जीवन की सर्वथा आहुति ही डाल दे, अपने आप को समाप्त
करदे । जिस अहिंसा की परिपालना में जीवन ही सुरक्षित न रह - सके तो उस अहिंसा का पालन कैसे संभव हो सकता है ? . . .
. ऊपर ऊपर से जब हम देखते हैं और विचार करते हैं तो ये बातें .. कुछ तर्क-संगत प्रतीत होती हैं, किन्तु जैन-शास्त्रों में अहिंसा का जो : . वर्गीकरण किया गया है, साधक की योग्यता तथा भूमिका के आधार : - परं अहिंसा की जो महावत तथा अणुव्रत, ये दो श्रेणियां बताई . = . हैं, उनको यदि भली भाँति समझ लिया जाए तो ऊपर के आक्षेप में ..
कुछ भी जान नहीं रहने पातो । अहिंसा के भेद और उपभेदों का ... ...वर्णन इस पुस्तक के जैन-धर्म नामक स्तंभ के चारित्रधर्म के.
अहिंसाणुव्रत तथा अहिंसा महाव्रत प्रकरण में किया जा चुका है, पाठक उसे देखने का प्रयास करें। ..