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चतुर्दश अध्याय : . अर्थात्-किसी-किसी शिथिलाचारी भिक्षु से गृहस्थ संयम में अधिक श्रेष्ठ होते हैं और गृहस्थों में, साधु संयम में श्रेष्ठ हैं ही। .
साधु साधना से होता है, वेप से नहीं। इसलिए स्थानकवासी परम्परा में १५ प्रकार के सिद्धों में गहस्थलिंग सिद्ध भी स्वीकार किया है। जो जीव सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और . सम्यक् चारित्र की साधना द्वारा गृहस्थ के वेष में ही मोक्ष में चले जाते हैं,वे गृहस्थलिंग सिद्ध कहलाते हैं । जैसे मरदेवी माता । उस ने गृहस्थ वेष में ही निर्वाण पद पाया था। उन्होंने साध्वी का वेष अंगीकार नहीं किया था। भावों की विलक्षण उच्चता ने उन के . कर्मों का क्षय कर के उन्हें अजर, अमर पद से विभूषित कर दिया था किन्तु दिगम्बर लोग ऐसा नहीं मानते। ...... .. मुनियों के १४ उपकरण....
. दिगम्बर परम्परा का विश्वास है कि साधु नग्न होते हैं, उन के पास किसी भी प्रकार का कोई भी उपकरण नहीं होना चाहिए। वे दिन में एक बार गृहस्थों के घर में ही खड़े होकर अपने हाथों में : भोजन कर लेते हैं, इसलिए उन्हें पात्र की आवश्यकता नहीं होती। दिगम्बर शब्द ही उन के नग्नत्व का परिचायक है। किसी भी उपकरण को अपने पास रखना इस परम्परा में परिग्रह माना गया है।
उपकरण साधुता का नाश कर देता है । अतः दिगम्बर परम्परा कह.ती है कि साधु के पास किसी भी प्रकार का उपकरण नहीं होना चाहिए । किन्तु स्थानकवासी परम्परा का ऐसा विश्वास नहीं है। यह परम्परा किसी भी उपकरण को परिग्रह का रूप नहीं देती। इस ने आसक्ति, और मूभिाव को ही परिग्रह माना है । साधु के साथ वस्त्र आदि उपकरण हों या न हों, यदि मन में उन के प्रति