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पन्द्रहवां अध्याय
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maram अन्तकृद्दशांग, श्री आचारांग, श्री स्थानांग, श्री तत्त्वार्थ सूत्र-जैनागम समन्वय, जैनतत्त्वकलिका-विकास, जैनागमों में अष्टांग योग, जैनागमों में स्यावाद् (दो भाग), जैनागमन्याय संग्रह आदि मुख्य ग्रन्थ रत्न हैं। इन ग्रन्थों का अध्ययन करने से प्राचार्य श्री के गंभीर ज्ञान का पूर्णतया परिचय मिल जाता है। .. . साहित्यिक व्यक्तित्व. प्राकृत भाषा तथा साहित्य के विद्वान् के रूप में प्राचार्य प्रवर
की ख्याति भारत के कोने-कोने में फैल चुकी थी। पाश्चात्य विद्वान भी .. आप की प्राकृत भाषा की सेवाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए । एक बार
श्राप लाहौर में पधारे, वहां पंजाव यूनिवर्सिटी के वाईस चाइन्सलर तथा प्राकृत भाषा के विख्यात विद्वान डा० ए० सी० वूल्नर से आप .. की भेंट हुई । वार्तालाप प्राकृत भाषा में किया गया। डा० वूल्नर .. आचार्य श्री के व्यक्तित्व और प्राकृत तथा संस्कृत भाषा के प्रगाढ़ . पाण्डित्यं से अत्यधिक प्रभावित हुए। आप को पंजाब यूनिवर्सिटी के
हस्तलिखित ग्रन्थों का वृहद् भण्डार दिखाया गया । और ग्राप श्री .. को मान देने के विचार से डा० वूल्नर ने पाप को पंजाव लायब्रेरी . .' .. का प्रयोग करने के लिए सम्मानित सदस्य बनाया। पंजाब
: यूनिवर्सिटी का यह विशेष नियम था कि यूनिवर्सिटी से सम्बन्धित . व्यक्ति ही लायब्रेरी का प्रयोग कर सकता था किन्तु आप के व्यक्तित्व' ।
से प्रभावित हो कर यह विशेष अधिकार आप को दे गया । इस से साहित्यिक संस्थाओं में आप के व्यापक पाण्डित्य के मान तथा उस
की प्रतिष्ठा का भली प्रकार पता लगाया जा सकता है। .......... ...... प्राचार्य श्री का जीवन-चरित्र धैर्य आदि महानतामों से भर-...
पूर है। हमने तो यहां कुछ झांकी मात्र दिखाई है। विशेष- जानने . .. : की इच्छा रखने वाले महानुभावों को मेरे द्वारा लिखित "आचार्यसम्राट" नामक पुस्तक पढ़ लेनी चाहिए। . . . . . . . . . .