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प्रश्नों के उत्तर ' - mmmmmmmmmmmmmm.rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr
न वता कर अभ्यास और वैराग्य इन दो साधनों में भी अभ्यास .. को सर्व प्रथम स्थान दिया है । अभ्यास के अनेकों उपाय हैं। मंत्रों .
को यदि स्वर के उतार-चढ़ाव के साथ पढ़ा जाए, और इस का '. अभ्यास बढ़ता चला जाए तो मन स्थिर हो सकता है। या मंत्रों
को ज़रा मन्थर स्वर से वोलिए, और मुखनिःसृत मंत्र. ध्वनि की ओर मन को लगा दीजिये, धीरे-धीरे इस में अभ्यास वढ़ा दीजिए तो एक दिन मन एकाग्न हो जाएगा। इस तरह अभ्यास मानसिक . एकाग्रता में सहायक सिद्ध हो जाता है। . . यह सत्य है कि मन को स्थिर करने के लिए यदि कोई मूर्ति .. का भी प्रयोग कर लेता है, तो इस में आपत्ति वाली कोई बात नहीं है । मूर्ति पर दृष्टि जमा कर किया गया अभ्यास भी मानसिक एकाग्नता का कारण बन सकता है। पर इस का यह मतलब नहीं . . कि मूर्ति को मस्तक झुकाया जाए, और उस पर पुष्प चढ़ाए जाएं, ।। तिलक लगाया जाएं या उसे भोग लगाया जाए। क्योंकि मूर्ति को सर झुकाना चेतनता का अपमान करना है। सोने, चांदो, पत्थर, या काग़ज़ा आदि के किसी विशिष्ट आकार के सामने नतमस्तक होना मानव की महत्ता, और अनन्त सूर्यों के सूर्य आत्मदेव की .. अवहेलना करना है । वह मानव जो साधना की पगडण्डियों पर चल कर इन्द्रों के सिंहासनों को कम्पित कर सकता है, मुक्ति-पुरी के पट खोल सकता है, अध्यात्मवाद की समस्त शक्तियाँ जिसके जीवनांगण में क्रीड़ाएं कर सकती हैं, संसार के निखिल अध्यात्म वैभव जिस के चरणों में बिखरे पड़े हैं, उस महाशक्ति का एक पाषाण खण्ड के आगे. अपने को नतमस्तक कर देना, मानवता तथा अध्यात्मवाद का सव से बड़ा तिरस्कार करना है, जिसको कभी न्यायसंगत और वुद्धिसंगत नहीं कहा जा सकता। . . इसके अलावा, प्रकृति का एक नियम है। वह यह किः मनुष्य