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सोलहवां अध्याय
irrrrrrrrrrrrr प्रश्न-यदि मूर्ति की पूजा सर्वथा निरुपयोगी है तो फिर मूर्ति बनाने का उद्देश्य क्या है ? ...:. उत्तर-स्थानकवासी परम्परा को मूर्ति से कोई विरोध नहीं। . है । वह तो केवल उस की पूजा से विरोध रखती है। मूर्ति को हाथ ..
जोड़ना, स्नान कराना, तिलक लगाना, भोग लगाना, शृंगारित । करना, पुष्प आदि सामग्री चढ़ाना, तथा भगवान् की भांति उसकी प्रतिष्ठा करना अदि मान्यताओं का विरोध करती है । मूर्ति सर्वथा अनुपयोगी है, उसकी कोई भी उपयोगिता नहीं है, ऐसी धारणा .. स्थानकवासी परम्परा की नहीं है।
... मूर्ति एक कला है। कलासाहित्य में मूर्ति का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिस गुण या कौशल के कारण किसी वस्तु में .. उपयोगिता और सुन्दरता पाती है, उस की कला संज्ञा है । कला के
दो प्रकार हैं। एक उपयोगी कला दूसरी ललित कला । उपयोगी कला में बढ़ई, लुहार, सुनार, कुम्हार, राज, जुलाहे आदि के व्यवसाय सम्मिलित हैं। इस के द्वारा मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताएं पूर्ण होती हैं। ललित कला के अन्तर्गत वास्तुकला, मूर्तिकला,
चित्रकला, संगीत कला और काव्य कला ये पांच कलाएं आती हैं। .. - वास्तुकला का आधार पत्थर, लोहा, लकड़ी आदि है, जिससे . इमारतें बनाई जाती हैं। चित्रकला का आधार कपड़ा, कागंज, . .. लकड़ी का चित्रपट है, जिस पर चित्रकार अपने ब्रुश या कलम की ...
सहायता से भिन्न-भिन्न पदार्थों पर जीव-धारियों के प्राकृतिक ... रूपरंग और आकार आदि का अनुभव करता है । संगीत कला का :- आधार नाद है, जिस को या तो मनुष्य अपने कण्ठ से या कई प्रकार :
के यन्त्रों द्वारा उत्पन्न करता है। काव्य कला शाब्दिक संकेतों के ... .. , आधार पर अपना अस्तित्व प्रदर्शित करती है । रही मूर्ति कला की :