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प्रश्नों के उत्तर -~~~~~~~~~~~~~~~irrorm मूर्तिकला का ही परिचय प्राप्त होता है। भारत के प्राचीन शिल्पी कितने मेधावी और प्रतिभाशाली होते थे ? उनके हाथ में कितना विचित्र चमत्कार और अद्भुत आकर्षण रहता था? वे अपनी विचार-... धारा को मूर्त रूप कैसे और कितनी सफलता के साथ देते थे ? आदि सभी वातों की जानकारी प्राप्त होती है। परन्तु इससे मूर्तिपूजा को प्रमाणित नहीं किया जा सकता। अत: खुदाई में निकल रहीं । प्राचीन मतियों से मूर्तिपूजा की प्राचीनता समझ लेने की भूल कदापि नहीं करना चाहिए। . ... . मूर्ति प्राचीन है, इस लिए वह पूज्य समझी जाए या उसकी पूजा करनी चाहिए, यह कोई सिद्धान्त नहीं बन सकता। क्योंकि प्राचीन तो बहुत सी वस्तुएं मिल सकती हैं, तो क्या सभी की पूजा की जानी चाहिए ? खुदाई में तो नानाविध वरतन भी निकलते हैं, अस्थियां भी निकलती हैं, तथा अन्य अनेकों पदार्थ भी निकलते हैं, पर इस का यह अर्थ तो कभी नहीं हो सकता कि वे प्राचीन हैं, इस लिए उनकी पूजा अवश्य होनी चाहिए। जैसे . वरतन, अस्थियां यादि पदार्थ पूज्य नहीं माने जा सकते, विल्कुल वैसी ही स्थिति मूर्तियों की भी है,
मूर्तियों को प्राचीन समझ कर उन की पूजा नहीं की जा सकती। ...... प्रश्न-शास्त्रों में साधु को चित्रित दीवार देखने का... निषेध क्यों किया गया है ? ......
उत्तर-साधु यदि चित्रों के देखने में व्यस्त रहेगा तो उसके ज्ञान-ध्यान में विघ्न पड़ेगा। साधु को ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय, तप, संयम आदि अनुष्ठानों में व्यस्त रहना पड़ता है तथा जन-मानस को सत्य, अहिंसा का उपदेशामृत पिलाना होता है। किन्तुं चित्रों के देखने ..
में लगे रहने से समय का दुरुपयोग होगा; और ज्ञान-ध्यान में भी .. E . "चित्तभित्तिं न निभाए” दशवकालिक अ०८/५५ . . . ..