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सोलहवां अध्याय
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irmirror गया है, इसी ने मूर्ति के मूल उद्देश्यों की हत्या कर दी है। फलत; __ मूर्तिपूजा के विरोध ने जन्म लिया, और मूर्तिपूजा को हिंसा-कृत्य तथा : व्यर्थ का आडम्बर बता कर जन-मानस को अन्धकार से निकालने के लिए उसके निषेध का प्रचार होने लगा। ऐसा होना आवश्यक भी था, अन्यथा हिंसा और आडम्बर जनमानस पर सदा के लिए छा जाते। . प्रश्न-आजकल खुदाई में तीर्थ कर देवों की हज़ारों: वर्ष पुरानी मूर्तियां निकलती हैं, यदि मूर्तिपूजा अर्वाचीन होती तो हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियां न निकलती ? प्राचीन मूर्तियों की प्राप्ति ही इस बात का प्रमाण है कि पहले मूर्तिपूजा होती थी। फिर मूर्तिपूजा का निषेध क्यों ? ... - उत्तर-मूर्तिपूजा के निषेध का यह अर्थ नहीं है कि मूर्तियों
का भी निषेध हो गया। मूर्तियों का निर्माण तो हज़ारों नहीं, लाखों -... वर्ष पर्व का है। इस सत्य से कौन इन्कार कर सकता है ? ७२. - कलाओं में से चित्रकला (मूर्ति-कला) भी एक कला है, कला की दृष्टि
से मति का बड़ा ऊँचा स्थान है और यह भी मनुष्य की प्रतिभा का एक अनुपम चमत्कार है। इसी लिए इसे विशेषरूप से ७२ कलागों में परिगणित किया गया है ? ७२ कलाएं भी स्वयं भगवान् आदिनाथ. ने संसार को सिखाई थीं। अतः मूर्ति की प्राचीनता से कोई मंत- : भेद नहीं है । मतभेद तो मूर्तिपूजा से है। मूर्ति की पूजा करना; चेतन की भांति जड़ की उपासना करना और उसे स्नान कराना, तिलक लगाना, भोग लगाना, पुष्पादि चढ़ाना आदि जितनी भी प्रवृत्तियां हैं, इन का अध्यात्मवाद में कोई स्थान नहीं है। .
पुरातत्त्व विभाग के पास खुदाई में जो मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं, एवं हो रही हैं या भविष्य में होंगी, उनसे केवल भारत की प्राचीन
बों में से चित्र स्थान है और विशेषरूप से