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८४९. .. : ... प्रश्नों के उत्तर ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~-..---...--....-~~~~~~~~~~~~~~~rrrrrrrrr .. ठीक नहीं है, क्योंकि भगवान तो इन सब प्रपंचों के त्यागी थे, त्याग का ही उन्हों ने संसार को उपदेश दिया है। ऐसे त्यागी और वीतरागो जीवन में ऐसे भोगमय नाटकों का क्या उद्देश्य है ? जो शृगार .. साधुओं के लिए त्याज्य एवं हेय है, फिर वह भगवान के लिए कैसे.. उपादेय बन सकता है ? गीत वीतरागता के गाए जाएं और . गेय (जिस के गीत गाए जाते हैं) को भोग-सामग्री से लथपथ कर दिया जाए, यह कहां तक न्याय-संगत तथा तर्कसंगत है ? शान्तिः से . . विचार करने की आवश्यकता है।
... प्रश्न-यह माना है कि मूर्ति जड़ है किन्तु उस की पूजा तो होनी ही चाहिए। क्योंकि मूर्ति को देखने से मूर्ति- .. मान इष्टदेव का स्मरण हो जाता है। जो मूर्ति अपने इष्टदेव का स्मरण कराती है उसको नमस्कार करने में क्या वाधा है ? ... उत्तर-सर्वप्रथम तो यह जान लेना चाहिए कि "मूर्ति मूर्ति-मान पदार्थ का अवश्य स्मरण करा देती है" यह कोई सिद्धान्त नहीं है । यदि यह सिद्धान्त होता तो एक अनभिज्ञ व्यक्ति को भी मूर्ति देख कर मूर्तिमान व्यक्ति का बोध हो जाना चाहिए था। पर ऐसा होता नहीं है। यदि किसी ने. महाराणा प्रताप को नहीं देखा या नहीं सुना है तो भले ही 'उसके सामने राणा की मूर्ति रख दी जाए, पर वह व्यक्ति कभी यह नहीं कह सकता कि यह राणा की मूर्ति है । यदि "मूर्ति को देखकर मूर्तिमान पदार्थ का ज्ञान हो जाता है" यह वात सत्य होती तो उस व्यक्ति को .. राणा की मूर्ति को देख कर राणा का अवश्य बोध हो जाना चाहिए।
था ? पर ऐसा होता नहीं है । अतः यह बात सिद्धान्त का रूप नहीं : - ले सकती। .: :: .
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