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सोलहवां व्याय
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चिन्तन करना उनके जीवन की साधना थी । स्वयं तो सब कुछ किया ही करते थे । किन्तु परिवार से भी कहा करते थे, सब को समझाया करते थे कि प्रभु का भजन करना चाहिए, यहीं जीवन का अन्तिम साथी है । संसार के समस्त वैभव यहीं रह जाने वाले हैं। कोडी भी मनुष्य के साथ नहीं जाती । सिकन्दर दुनिया से क्या ले गया ? और तो और मैंने लाखों कमाए लाखों की जायदाद बनाई । अव चलने को तैयार हूं। मैं क्या ले जाऊंगा ? मैं भी तो यहां से खाली हाथ हो चलता बनूंगा। मैं ही नहीं, मेरी तरह तुम भी ऐसे ही चलोगे, तुम्हारी ही नहीं, तुम्हारे परिवार की भी यही दशा होगी । ग्रतः जीवन में कुछ सत्कर्म करना चाहिए, जीवन के भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करना चाहिए। -- यादि बातें आपके मस्तिष्क में उत्पन्न हो जाती हैं। किसे देख कर ? अपने पुराने मकान को देख कर । इस तरह एक मकान भी अपने ढंग से किसी घटना या सत्य का स्मरण कराने में कारण वन जाता है । मकान ही नहीं अपितु संसार की हर वस्तु अपने-अपने ढंग से किसी न किसी बात का स्मरण कराने में कारण वन सकती है । यदि किसी वस्तु की स्मारिका होने से मूर्ति वंदनीय या पूजनीय मानी जायगी तो मूर्ति की तरह संसार की ग्रन्य वस्तुएं भी पूजनीय स्वीकार करनी पड़ेंगी । यह कैसे हो सकता है कि मूर्तिमान व्यक्ति का स्मरण कराने से मूर्ति को तो नमस्कार किया जाए और दूसरो वस्तुएं जो कि अपने-अपने ढंग से अन्य वस्तुयों का स्मरण कराती: हैं उन को नमस्कार न किया जाए ? इस तरह मूर्ति की भांति चप्पल, मकान आदि सव पदार्थों को नमस्कार करना पड़ेगा । क्योंकि मूर्ति की तरह इनके द्वारा भी हमें किसी न किसी घटना चक्र का स्मरण हो ग्राता है ।
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प्रश्न- यह सत्य है कि प्रत्येक वस्तु किसी न किसी
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