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सोलहवां अध्याय
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करने के लिए ही नमस्कार का उपयोग किया जाता है । इस सत्य से : - किसी को विरोध नहीं है। यहाँ सब एकमत हैं। ...
अव मूर्ति की बात लोजिए। मूर्ति को नमस्कार करने से . पहले यह समझ लेना चाहिए कि मूर्ति को नमस्कार करने वाले व्यक्ति से ऊंची है या वह व्यक्ति उस से ऊंचा है। यह सर्वविदित सत्य है कि व्यक्ति चेतन है, और मूर्ति जड़ है। दोनों में से चेतन का स्थान ऊंचा है। चेतन जड़ से बड़ा है। ऐसी दशा में चेतन का जड़ के आगे झुकना सर्वथा अयोग्य है, अनुचित है। चेतन का जड़ को प्रणाम करने का क्या मतलव ? जड़ के आगे चेतन नतमस्तक हो तो क्या यह चेतनता • का उपहास नहीं है ? वस्तुतः जड़ को नममस्कार करना अपने चेतन- . स्वरूप को अपमानित करना है। इस प्रकार मूर्ति-पूजा या जड़-पूजा का विरोध स्वयं नमस्कार शब्द का अर्थ कर रहा है। इसी लिए . स्थानकवासी परम्परा मूर्ति-पूजा में विश्वास नहीं रखती और - इसे वह असंगत और अशास्त्रीय कहती है।
.... यह सत्य है कि मूर्ति, मूर्ति है । मूर्ति को मूर्ति मानने से किसी : · · को इन्कार नहीं हो सकता, किन्तु मूर्ति को भगवान मानना या ..
भगवान् की भांति उसका पूजन करना, स्तवन करना यह ठीक नहीं .. हैं। जड़ को चेतन मान लेना किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा . सकता। जैनांगमों ने २५ प्रकार के मिथ्यात्वों में ले "जड़ को चेतन ...
मानना या चेतन को जड़ मानना," यह भी एक मिथ्यात्व माना है। " अतः मूर्ति को चेतन समझना, भगवान मानकर उस को पूजा करना,
उसे नमस्कार करना मिथ्यात्व का पोषण करना है, जोकि किसी भी
दशा में उचित नहीं है। - .... मूर्ति को स्नान कराना, तिलक लगाना, उसे भोग लगाना, .
उसे शृगारित करना आदि जितना भी आडम्बर है, यह सब फिस लिए ? यदि यह सव मूर्ति को भगवान समझ कर करते हैं, तब भी ..