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भाव पूजा
सोलहवां अध्याय प्रश्न-मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में स्थानकवासी समाज का क्या विश्वास है ? यह मूर्तिपूजा का समर्थक है या विरोधी ? . . . .... उत्तर-पूजा शब्द का अर्थ है-परमात्मा का भक्तिपूर्ण स्मरण - या स्तवन । पूजा दो प्रकार की होती है-द्रव्य पूजा और भाव पूजा। मन्दिर में जाकर पापाण, रजत, सुवर्ण या माटी आदि द्वारा ....
वनी भगवान की मूर्ति को नमस्कार करना, उस पर पुष्प, चावल . . ' . आदि चढ़ाना, उसे तिलक लगाना, उसके आगे धूप जगाना, टल्लियां .. 'बजाना, मूर्ति, की परिक्रमा करना आदि सभी व्यापारों को . - द्रव्य पूजा कहते हैं। भगवान के साथ तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित . ' करने के लिए भगवान के गुणों का चिन्तन करना, प्रभु के गुणों का स्मरण करना, प्रभु-गुणों को आत्मसात् करने का प्रयास करना ... भाव पूजा कही जाती है। भाव पूजा में द्रव्य पूजा की भांति पुष्पों .
की, धूप, की, चन्दन की यहां तक कि किसी भी वाह्य सामग्री की - अावश्यकता नहीं होती। भावपूजा का सम्बन्ध प्रभु के गुणों के साथ। ' होता है और पूजक को उनमें अपने को निमग्न करना पड़ता है। .:. द्रव्यपूजा के लिये प्रातः या सायं का समय सुनिश्चित होता. .
है, किन्तु भावपूजा के लिए कोई विशेष समय निश्चित नहीं, यह .. किसी भी समय की जा सकती है। इसके लिए किसी समय विशेष .:. ___ का प्रतिबंध नहीं है । जिस स्थान पर चाहें और जव चाहें, भावपूजा.