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Marat
प्रश्नों के उत्तर
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जा रही थी । श्राप के चारित्रनिष्ठः जीवन ने जनमानस पर अपना अधिकार जमा लिया था । उसी का यह शुभ परिणाम था कि श्रद्धेय ग्राचार्य श्री कांशी राम जी महाराज के स्वर्गवास होने के पश्चात् वि० सं० २००३ चैत्रशुक्ला त्रयोदशी को लुधाना में ग्राप को पंजाब सम्प्रदाय के प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। और वि० सं० २००९, में सादड़ी (मारवाड़) सम्मेलन में स्थानकवासी समाज की सभी सम्प्रदायों के प्रतिनिधि मुनिवरों ने आप को श्रमण संघ के प्रधान प्राचार्य के रूप में स्वीकार किया । श्राप की अनुपस्थिति में श्रमण संघ द्वारा प्रदान किया गया यह गौरव-पूर्ण पद इस बात का परिचायक है कि श्रद्धेय प्राचार्य श्री का आदर, सम्मान सर्वतोमुखी था । इस तरह एक ही जीवन में उपाध्याय, एक विशेष सम्प्रदाय के प्राचार्य और अखिल भारतीय स्थानकवासी भ्रमणसंघ के प्राचार्य पद को प्राप्त करना आपके प्राध्यात्मिक जीवन की सत्र से बड़ी सफलता थी । श्राचार्य श्री की महत्ता, उच्चता तथा लोकप्रियता का इस से बढ़कर और क्या उदाहण हो सकता है ?
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साहित्य-निर्माण
ग्रापने श्रागमों का तलस्पर्शी ग्रव्ययन किया । ग्रोपका चिन्तन, मनन, भी बहुत गहरा था। शास्त्रों के बहुत से पाठ श्राप को करामलकवत् उपस्थित थे, और ग्रागमों में कौन रत्न किस स्थल पर है, यह भी ग्राम की दृष्टि से प्रोफल नहीं रहा । इसी का परिणाम है कि आप आगम साहित्य से सम्वन्धित अनेकों ग्रन्थों का निर्माण कर सके ।
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श्राप के द्वारा लिखित एवं अनुवादित करीव ६० पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिन में उत्तराध्ययन सूत्र ( ३ भाग ), 'दशाश्रुतस्कंत्र ग्रनुत्तरोपपातिक दशा, अनुयोगद्वार, दशवेकालिक,