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प्रश्नों के उत्तर - .
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का लाभ ले सकते हैं । सांसारिक काम धन्धा करते समय यदि ... नैतिकता, न्यायप्रियता तथा सत्यनिष्ठा का नेतृत्व चल रहा हो, तो
उस समय भावपूजा जीवन में साकार रूप लेकर विराजमान हो। .... जाती है। भावपूजा दुष्प्रकृति, खराब स्वभाव या काम, क्रोध,
मोह, लोभ आदि जीवन-विकारों को समाप्त करके क्षमा, सरलता, निर्लोभता आदि सद्गुणों को जीवन के व्यवहार में प्रकट करने की भावना में ही निवास करती है। वस्तुतः सत्य और अहिंसा के
भावों को विकसित करके निजस्वरूप में रमण करने की प्रेरणा - प्रदान करना ही भावपूजा का मुख्य एवं अन्तिम लक्ष्य रहता है __ और इसी में उस की सफलता मानी गई है। . भावपूजा आत्म कल्याण का निर्भर है, आत्मोत्थान का स्रोत
है, द्रव्यपूजा का प्रात्मकल्याण और प्रात्मशुद्धि के साथ कोई सम्बन्ध · नहीं है। आत्मकल्याण तो भावपूजा से ही संभव है और भावपूजा
ही मानव को उसके समस्त विकारों का नाश करके महामानव के उच्चतम सिंहासन पर विठलाने की क्षमता रखती है । अतः स्थानकवासी परम्परा द्रव्यपूजा को कोई महत्त्व प्रदान नहीं करती। इस के विश्वासानुसार भाव पूजा जीवनोत्थान की पूर्वभूमिका है, और . इसी के द्वारा आत्म कल्याण और आत्मशुद्धि की उपलब्धि हो सकती है, ऐसा वह विश्वास रखती है। .
... ... प्रश्न-स्थानकवासी परम्परा द्रव्य पूजा में क्या दोष । मानती है ? और भावपूजा में क्या महत्त्व समझती है ?
उत्तर-भावपूजा के महत्त्व की चर्चा पूर्व की. जाचुकी है। . . भाव पूजा सर्वथा निर्दोष है, सात्त्विक है, प्रात्मशुद्धि की महाप्रेरणा : लिए हुए है । इस लिए भावपूजा का अपना विशेष महत्त्व है। यह. .. प्रात्मा में भगवत्स्वरूप के दर्शन कराती है, और आत्मा के समस्त