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प्रो डालचन्द जी, श्री कालू राम जी और श्री तुलसी जी हुए । प्राजकल श्री तुलसी जी तेरहपन्थ का नेतृत्व कर रहे हैं। . .. ... - साबु-समाज का भविष्य सुव्यवस्थित तथा सुदृढ़ बनाने के लिए तेरहपन्थ के नेताओं ने कुछ क्रान्ति अवश्य को है । जैसे अपने नाम से चेली-चेला न वनाना, आचार्य श्री को भगवान की तरह मानना और उन्हीं को अपना आराध्य मान कर चलना । इन के यहां सभी शिष्य आचार्य के बनाए जाते हैं । सब साधु, साध्वी एक ही प्राचार्य की निश्राय में रहते हैं। अन्तिम कुछ वर्षों से तो इस सम्प्रदाय ने अच्छी खासी उन्नति की है। प्राचार्य तुलसी ने इस समाज का कायाकल्प सा कर दिया है । अपने पूर्वाचार्यों के, मरते हुए को बचाना पाप है, भूखे, प्यासे को अन्न, पानी देना १८ पापों का सेवन करना है, आदि सिद्धान्तों का बाह्य रूप बदल दिया है । अब लोगों के सामने इन सिद्धान्तों को विशेष चर्चा नहीं की जाती. है। इसके अतिरिक्त, अध्ययन-अध्यापन की दृष्टि से साधु-साध्वियों को योग्य और विद्वान बनाया जाता है । उन्हें लेखन-कला, व्याख्यान-कला तथा प्रवधान-कला की योग्य व्यवस्थित शिक्षा दी जाती है । अणुव्रत आन्दोलन चलाकर अव प्राचार्य तुलसी अपने को व्यापक तथा लोक-प्रिय बनाने में अधिक रस लेने लगे हैं। भले ही इस आन्दोलन के पीछे अपने व्यक्तित्व को अधिकाधिक प्रभाव-पूर्ण बनाने की महत्त्वाकांक्षा. ही काम कर रही हो । तथापि इस महात्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए इन्हें अपने मूल सिद्धान्तों में काफ़ी फेरफार करना पड़ा है। ... प्रश्नः स्थानकवासी परम्परा में और तेरहपन्थ में सिद्धान्त सम्बन्धो क्या अन्तर पाया जाता है ?