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प्रश्नों के उत्तर
. स्थानकवासी परम्परा का विश्वास है कि अणुव्रती बनने के · लिए सर्व-प्रथम जीवादिक तत्त्वों पर श्रद्धा रखना परमावश्यक है।
विना श्रद्धा के जो भी नियमादि ग्रहण किए जाते हैं, वे मोक्षोप.. योगी नहीं हो सकते । श्रद्धा साधना का प्रथम सोपान है और ... अणुव्रत ग्रहण करना द्वितीय सोपान है। श्रद्धा मूल है । अणुव्रत
शखा, पत्ते और फलफूल के समान है । मूल के विना वृक्ष कैसा? किन्तु आचार्य श्री तुलसी के अणुव्रती संघ का सदस्य बनने के लिए। सम्यक्त्व की आवश्यकता नहीं है। प्रात्मा को अमर मानने की आवश्यकता भी नहीं,स्वर्ग,नरक मानना भी आवश्यक नहीं है,तथा. परमात्मा और परमात्मा बनाने वाले नियमों पर आस्था रखना । .: भी जरूरी नहीं है । कोई भी व्यक्ति चाहे वह आस्तिक हो या
नास्तिक, चाहे वह हिंसा में विश्वास रखता हो या अहिंसा में वह :: अणुव्रती बन सकता है। श्रद्धा रूप प्रथम भूमिका की आवश्यकता
और अनिवार्यता को वहां कोई महत्त्व प्राप्त नहीं है। जब कि - स्थानकवासी परम्परा में सम्यग् दर्शन और सम्यग् ज्ञान होने के बाद ही अणुव्रती बनने की योग्यता स्वीकार की गई है।
... तेरहपन्थ के साधु साध्वी अपने निवास-स्थान पर यात्रियों द्वारा लाए गए भोजन का ग्रहण कर लेते हैं किन्तु स्थानकदासी . साधु ऐसा नहीं करते हैं।
__ केवल ५७१ से १४ तक मालवा स्टीम प्रेस, मोगा में छपी ।