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पन्द्रहवां अध्याय
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- महापर्व सम्वत्सरी ... सम्वत्सरी एक लोकोत्तर या अलौकिक महापर्व है। यह महापर्व मानव को आत्मनिरीक्षण, आत्मचिन्तन तथा स्व-स्वरूपरमणं . . की मधुर प्रेरणा प्रदान करता है। मानवी जाति को सुखशान्ति का दिव्य आलोक दिखाता है। वैयक्तिक दोषों, त्रुटियों, स्खलनाओं . तथा भूलों पर गंभीर दृष्टिपात करके आत्मशुद्धि की पवित्र प्रेरणा . देता है । कड़े से कड़े सामाजिक तथा राष्ट्रीय वैरविरोध व मतभेद ... को भूल कर शत्रुतक के साथ सरल हृदय से सप्रेम व्यवहार करना और पारस्परिक मनोमालिन्य हटा कर* खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। .
मित्ती मे सबभूएसु , वेरं मज्झं न केणइ ।। __ के मंगल पाठ को जीवनसात् करलेना, तथा दूसरे प्राणियों की भूलों व गल्तियों को भी उदार हृदय से क्षमा कर देना, उनसे . मैत्री भाव स्थापित कर लेना आदि इस महा पर्व की आदर्श विशेषताएँ हैं। इस महापर्व की छाया तले बैठने वाला व्यक्ति . बासुरीभावना को छोड़ कर सात्त्विकता को प्राप्त कर लेता है और उसका कण-कण अध्यात्मवाद के सुरम्य पुष्पों से सुगन्धित हो उठता. है। मानव बाह्य जगत की आपातरमणीय वृत्तियों को छोड़ कर अन्तर्जगत की पूर्व भूमिका पर अवस्थित हो कर अपूर्व आनन्द सागर.. : ' में डुबकियां लेने लगता है। .. ... सम्वत्सर नाम वर्ष का है। सम्वत्सर शब्द से पर्व (त्यौहार).
... 4 में सब जीवों को क्षमा करता हूँ और वे सब जीव.भी मुझे क्षमा करें। .... मेरा सब जीवों के साथ पूर्ण मित्रता-भाव है, किसी के साथ भी वैरविरोध नहीं है।