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पन्द्रहवां अध्याय
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निवासी देव देवियों ने भी वीर - निर्वाण तथा श्री गौतम स्वामी के केवल ज्ञान का महोत्सव मना कर प्रभु वीर तथा श्री गौतम जी महाराज के चरणों में ग्रपनी-अपनी श्रद्धाञ्जलियां ग्रर्पित की थीं। वृद्धं परम्परा का विश्वास है कि प्रतीत की भांति ग्राज भी देवदेवियां वीर निर्वाण तथा गौतमीय: केवल ज्ञान के उपलक्ष्य में इस रात्रि को ग्रामोद-प्रमोद करते हैं और उत्सव मनाते हैं ।
जैन जगत में दीपमाला * एक महत्त्वपूर्ण और आध्यात्मिक पर्व माना गया है । जैन लोग बड़ी श्रद्धा तथा ग्रास्था के साथ इस पर्व को मनाते हैं। इस के उपलक्ष्य में धर्म-प्रेमी लोग ग्रधिकाधिक धार्मिक अनुष्ठान करते हैं । पौषध, व्रत यादि तप करते हैं सामायिक करते हैं ! उत्तराध्ययन सूत्र का पाठ करते हैं, भगवान के नाम का २४ घण्टों के लिए अखण्ड जाप करते हैं । कुछ लोग तो दीपमाला से पूर्व दो दिन लगातार उपवास करते हैं, दीपमाला के तीसरे दिन तेला ( लगातार तीन व्रत ) करते हैं । इस तरह दीपमाला का दिन तथा रात्रि धर्म - ध्यान के वातावरण में व्यतीत किये जाते हैं ।
भय्या-दूज
दीपमाला भगवान महावीर की निर्वाणरात्रि है । इस विषय पर "वीर निर्वाण महापर्व " के प्रसंग में प्रकाश डाला जा चुका है । महावीर के निर्वाण का वृत्तान्त जव इन के बड़े भाई महाराज नन्दीवर्धन के कानों तक पहुंचा तो उन को यह सुन कर असीम वेदना हुई | उन्हें वियोगजन्य अत्यधिक मार्मिक वेदना ने बुरी तरह ग्राहत कर डाला। क्या हुआ, महावीर साधु वन गए, उन्हों ने घरवार को तिलांजलि दे दी, वनों में जाकर तपस्या प्रारंभ कर दी, फिर
* दीपमाला के सम्वन्ध में अधिक जानने के इच्छुकों को मेरी लिखी
" दीपमाला और भगवान महावीर” नाम की पुस्तक देख लेनी चाहिए।