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प्रश्नों के उत्तर..
भी वे भाई ही तो थे। भाई की आत्यन्तिक जुदाई से भाई को ' असह्य वेदना का होना स्वाभाविक ही है । जैन इतिहास कहता है: . कि भाई के वियोगजन्य दुःख से व्याकुल हो कर भाई ने अन्नजल :
का त्याग कर दिया, आमरण अनशन कर दिया। नरेश नन्दीवर्वन के : इस आमरण अनशन से सारे राज्य में हाहाकार मच गया । अन्त में,
भगवान महावीर की बहिन सुदर्शनां आई, उसने भाई नंदी-वर्धन को .. बड़ी मुश्किल से समझाया और आखिर में अपने घर बुला कर भाई .
को भोजन कराया। जिस दिन भोजन कराया उस दिन कार्तिक शुक्ला . . द्वितीया थी। जैन परम्परा के अनुसार धीरे-धीरे यह द्वितीया .. भय्या दूज के नाम से एक पर्व के रूप में परिवर्तित हो गई। ...
- अाज भी भय्या-दूज पर्व मनाया जाता है। आज भी वहिन .: भाई को अपने घर बुलाती है और भाई को तिलक लगा कर सप्रेम ..
उसके साथ भोजन करती है। इस पर्व द्वारा भाई और वहिन के हृदयों में वह रही प्रेम-धारा के आज भी पूर्व की भांति दर्शन किए ..
जा सकते हैं । वस्तुतः भव्यादूज वहिन और भाई के पवित्र प्रेम का । . प्रतीक है। भाई गरीव हो, कितना भी निर्धन क्यों न हो, यहां । ... तक कि दाने-दाने का मोहताज हो, फिर भी वहिन के लिए वह भाई . . ही रहेगा, बहिन का अटूट प्रेम भाई से टूट नहीं सकता, बहिन का ... मानस भाई के लिए सदा मंगल कामना करता रहता है और वहिन . - मृत्युशय्या पर भी क्यों न पड़ी हो, तब भी वह भाई का हित ही :
सोचती है। यही स्थिति भाई की होती है, अपनी बहिन के प्रति । बहिन कैसी भी दशा में हो, उस. का परिवार सम्पन्न हो या :
खस्ताहाल हो, तथापि भाई बहिन को देवी की तरह पूजता है, अपने , - . सांझे दूध की सदा लाज रखता है.। भाई वहिन पर कभी रुष्ट भी. . हो जाए किन्तु जव बहिन की गीली आँखें देखता है तो झट उसका
रोष गायब हो जाता हैं । हृदय का प्रेम-सरोवर छलकने लग जाता