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पन्द्रहवां अध्याय wwwwwmmmmm~~~~~~~~-~~~~~~~mmmmmm जाएं, आपसमें भाई-भाई वन कर रहें तो किसी में कोई लड़ाई झगड़ा न हो। यदि देश में सर्वत्र भ्रातृ-भाव हो, शान्ति स्थापित हो, कोई आपस में क्लेश न करे, तो पुलिस और अदालत के लिए इतना धन व्यय करने . की क्या आवश्यकता है ? जो धन देश के विवादों और पारस्परिक झगड़ों को शान्त करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, वही धन यदि देश के निर्माण और उत्थान में लगाया जाए, अशिक्षित जनता . को शिक्षित करने में प्रयुक्त किया जाए तो हमारा देश आध्यात्मिक, . सामाजिक और राष्ट्रीय सभी दृष्टियों से उन्नत और समुन्नत हो सकता है।
सम्वत्सरी जैनों का एक विशेष आध्यात्मिक और लोकोत्तर . पर्व है। इस पर्व में खास तौर से तप, त्याग और ब्रह्मचर्य का पाराधन किया जाता है। व्याख्यानों के लिए विशेष रूप से पण्डाल वनवाए. जाते हैं, वाहिर से बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाकर इस पर्व की महत्ता
पर व्याख्यान कराए जाते हैं । इस पवित्र दिन परोपकारी संस्थाओं .. को दान दिया जाता है। सव पुरुष एकत्रित हो कर परस्पर गले .. - मिलते हैं, और गतवर्ष की अपनी गल्तियों के लिए परस्पर क्षमा- .
याचना करते हैं । जो लोग देशान्तर में होते हैं, उनसे पत्रों द्वारा क्षमायाचना की जाती है। गतवर्ष में कोई वैर विरोध एक दूसरे के प्रति. हो गया हो, उसके लिए “मिच्छा मि दुक्कडं'-मेरा दुष्कृत मिथ्या हो" यह कह कर या लिख कर क्षमा मांगी जाती है, इस दिन सभी स्त्री पुरुष अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार पौषध, व्रत, एकाशन, दया, सामायिक. संवर अदि करते हैं। इस दिन जैन समाज कोई व्यापार नहीं करता और सभी सावध प्रवृत्तियों से किनारा ।
. * सम्वत्सरी पर्व की विशेष जानकारी के इच्छुकों को मेरी लिखी ' सम्वत्सरी ... पर्व क्यों और कैसे ?' नामक पुस्तक देख लेनी चाहिए। . .