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पन्द्रहवां अध्याय
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पर्युषण महापर्व सम्वत्सरी आदि अनेकों प्रलौकिक पर्व माने जाते हैं । प्रश्न - क्या जैन धर्म में लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार के पर्व मनाए जाते हैं ? यदि मनाए जाते हैं तो वे कौन-कौन से हैं ?
उत्तर - जैन जगत में लौकिक और अलौकिक दोनों तरह के पर्व मनाए जाते हैं । जिनमें से कुछ एक पर्वो का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
अक्षय - तृतीया
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जैन संस्कृति तथा जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया का बड़ा माहात्म्य वर्णित है । जैन जगत ने इस पर्व को तपः- शक्ति का प्रतीक माना है । तप के मेरुपर्वत पर कौन कितना ऊँचा चढ़ सकता है ? यह चढ़ने वाले व्यक्ति की शक्ति का मापदण्ड है । एक वर्ष भर निरन्तर चल रहे तप की पूर्ति अक्षय तृतीया के पवित्र दिन हुई थी । इसलिए अक्षयतृतीया वर्षीतप का पूरक होने के साथ-साथ तपोगिरि का वह उच्चतम शिखर है कि जिस पर भगवान ऋषभदेव को छोड़ कर आजतक अवसर्पिणी काल का कोई भी व्यक्ति आरोहण नहीं कर सका ।
'अक्षयतृतीया का सीधा सम्बन्ध युगादि पुरुष भगवान ऋषभ - देव से हैं, वे स्वयं युगसंस्थापक और युग प्रवर्तक थे । पर जब संब कुछ छोड़ कर त्यागी वने तो एक वर्ष तक उन्हें भोजन नहीं मिला । उस समय के लोगों ने साधु-साध्वी को देखा नहीं था, वे साधुवृत्ति से सर्वथा ग्रनजान थे । इसलिए प्रभु के त्याग और आहार की विधि को कोई जानता और पहचानता भी नहीं था । वैशाख शुक्ला तृतीया के पुण्य दिन ठीक एक वर्ष के वाद हस्तिनापुर में राजकुमार
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