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प्रश्नों के उत्तर
करने वाले व्यक्ति को वे अपना श्रावक बना लेते हैं ? तब पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा करने वाले व्यक्ति को वे अपना श्रावक बनाने से क्यों इन्कार करते हैं ? है कोई तेरहपत्य समाज में ऐसा श्रावक जो पंवेन्द्रिय जीवों का वध करने की आजीविका द्वारा अपना जीवननिर्वाह करता हो और बारह व्रती विक कहलाता हो ? जब सिद्धान्त के अनुसार स्वयं नहीं चलना तो दूसरों को समझाने से क्या लाभ ?
पांचवीं युक्ति लीजिए। एक व्यक्ति बिना ढके मुख से बोलता है और एक किसी मुर्गे या बकरे को मार देता है । दोनों तेरहपन्थी साधु के पास आए और उन का उपदेश सुन कर दोनों को हिंसा से विरक्ति हो गई । साधु बनने का दृढ़ संकल्प कर लिया किन्तु पूवकृत पाप का प्रायश्चित्त लेने के लिए उन्हों ने अर्ज़ की। पहला
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बोला - महाराज ! मैं खुले मुख बोलता रहा हूं, इससे वायुकायिक जीवों को हिंसा होती रही है | अतः उस का मुझे प्रायश्चित्त दे दीजिए। दूसरा बोला- महाराज ! मैंने बकरे की गरदने काटी हैं । मुझे भी प्रायश्चित्त करवा दीजिए। ग्रत्र तेरहपन्थी साधु दोनों को एक समान दण्ड देंगे या उस में कुछ भेद रखेंगे ? एक ओर असंख्य वायुकायिक जोवों को हिंसा है दूसरी ओर कुछ एक पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा है; यदि एक समान दण्ड दिया जाएगा तो क्यों ? क्योंकि पंचेन्द्रिय जीव तो कुछ एक मरे हैं और वायुकायिक 'असंख्य जीव मरे हैं । यदि त्रस जीवों को मारने वाले को अधिक "दण्ड दिया जाएगा तो यह क्यों ? जब एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय सभी 'जीव समान हैं तो त्रस जीव के घातक को अधिक दण्ड कैसे दिया जा सकता है ? इन दोनों बातों से स्पष्ट हो जाता है कि त्रस और स्थावर जीव एक समान नहीं हैं ।