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प्रश्नों के उत्तर जाएगी? इसीलिए यही मानना पड़ेगा कि पुण्य का उत्पादन निजरा के बिना भी हो सकता है और पुण्य-रहित निर्जरा भी हों.. सकता है। इसके अलावा, यदि पुण्य-रहित निर्जरा, का होना नहीं .. माना जाएगा तो जीव कभी मुक्त नहीं हो सकेगा। क्योंकि निर्जरा :के साथ पुण्य की उत्पत्ति आवश्यक मानने पर जीव जैसे-जैसे कर्म . : की निर्जरा करेगा, वैसे-वैसे पुण्य उत्पन्न होता रहेगा। और जब : तक पुण्य और पाप दोनों नहीं छूट जाते तब तक मोक्ष नहीं हो सकता । . ... ... ... ... ... ... .. ... ..
.. तीर्थंकर भगवान लोगों को सौनय्यों का जो दान देते हैं वह . दान साधु तो लेते ही नहीं हैं, असाधु ही लेते हैं । यदि तथंकरों
को उस दान से पुण्य का उत्पन्न होना न माना जाए तो फिर
तेरहपन्थ के विश्वासानुसार उस दान को पाप मानना पड़ेगा। यदि . :' कहा जाए कि यह तीर्थंकरों की रीति है । इसलिए इसमें न धर्म है, . '
न पुण्य है और न पाप है। तो फिर .वक का विवाह करना, विवाहोपलक्ष्य में दिया गया भोजन आदि कार्यों को भी ऐसे ही
रीति मानना पड़ेगा। क्योंकि ये काम भी तो रीति रिवाज) के - अनुसार ही किए जाते हैं । रीति के अनुसार दिया गया तीर्थकरों : . द्वारा दान प प के अन्दर नहीं है, तो रोति के अनुसार कराए गए . विवाह आदि कर्म भी पाप कैसे हो सकते हैं ? यदि रोति के कारण... ... किए जाने पर भी इन कार्यों में पाप होता है तो तीर्थंकरों द्वारा
दिए गया दान पाप क्यों नहीं ? इससे स्पष्ट हो जाता है कि तीर्थ.. करों द्वारा दिए गए दान से पुण्योत्पादन होता है और वह पुण्योपा. . र्जन निर्जरा के साथ नहीं होता, बल्कि स्वतन्त्र रूप से होता है। - इसलिए तेरहपन्य का यह सिद्धान्त कि पुण्य निर्जरा के साथ ही ... उत्पन्न होता है, सर्वया शास्त्र-विरुद्ध कथन है । . . . . . . .
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