________________
प्रश्नों के उत्तर
बनाया हुआ पदार्थ साधु ग्रहण नहीं कर सकता । जरा विचार कीजिए कि पुण्य के लिए बना हुग्रा भोजन साधु तो लेते नहीं, भगवान ने उस आहार को ग्रहण करने का निषेध कर दिया है, तब वह पुण्यार्थं किस के लिए हुआ ? तेरहपन्य के सिद्धान्तानुसार यदि साधु को दिया जाए तभी वह निर्जरा का कारण बनता हुआ पुण्योत्पादक वन सकता है, अन्यथा नहीं | तवः दशवेकालिक के पुण पगडं इमं (पुण्य के लिए बनाया हुआ ) इस पाठ को निप्पत्ति कैसे होगी ? इस से स्पष्ट सिद्ध है कि पुण्य के लिए बनाया हुआ उसी को कहते हैं जो रंक, भिखारी, दुःखी, पशु, पक्षी आदि के लिए • बनाया गया हो। इस में निर्जरा को स्थान नहीं होता । ऐसे दीन, हीन, अपंग, अनाश्रितों को दान देने में पुण्य ही होता है । भाव यह है कि निर्जरा के बिना भी पुण्य की उत्पत्ति होती है ।
७८६
4
स्थानांग सूत्र के नवमस्थान में नव प्रकार का पुण्य कहा है। वहां मूल पाठ में निर्वद्य, सावद्य, या निर्जरा के साथ पुण्य होता है, ऐसा कोई उल्लेख नहीं है । दूसरी बात, यदि पुण्य का उत्पादन स्वतन्त्र रीति से न हो सकता होता तो पुण्य को अलग तत्त्व ही क्यों बनाया जाता ? खेत में अनाज के साथ उत्पन्न होने वाले घास का अलग वर्णन कोई नहीं करता के साथ उत्पन्न होता है तो पाप किस के पुण्य और पाप भिन्न गुणवाले के साथी हैं, दोनों श्राश्रवतत्त्व की
।
तीसरें, यदि पुण्य निर्जरा साथ पैदा होगा ? जैसे
पर्याय हैं, उसी प्रकार संवर, निर्जरा भी भिन्न गुण वाले के साथी ... हैं, वे मोक्ष तत्त्व के पर्याय रूप हैं। इसलिए जब पुण्य की उत्पत्ति निर्जरा के साथ ही मानी जावेगी तो पाप की उत्पत्ति किंस के साथ होगी ? फिर बेचारा- पाप अकेला और स्वतंत्र क्यों उत्पन्न होगा ?
C