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प्रश्नों के उत्तर ..
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नाम दान है । न देने का नाम तो दान है ही नहीं । यदि विन दिए ही दान हो सकता हो, तव तो साधु को आहार-पानी दिए. विना.. ही सुपात्र दान भी हो जावेगा । साधु को कष्ट न देने मात्र से ही सुपात्र दान देने की मान्यता उन के यहां नहीं है। केवल अभयदान के सम्बन्ध में ऐसी मान्यता वना कर उन्होंने कितना अर्थ का अनर्थ । किया है । यदि तेरह-पन्यियों की यह मान्यता ठीक हो तब तो. स्थावर जीव सब से अधिक अभयदान देने वाले सिद्ध होंगे। क्योंकि . पथ्वीकायिक, जलकायिक और वनस्पति-कायिक जीव किसे भय :: देते हैं ? इसलिए भय न देने का नाम अभयदान नहीं है किन्तु भयः । पाते हए जीव का भय मिटाने का नाम ही अभयदान है । व्यवहार . में भी अभयदान का अर्थ "भयभीत को भय-रहित बनाना” ही . किया जाता है । कोष. आदि में भी अभयदान का यही अर्थ है ।.. अभयदान का पात्र वही है जो भय पा रहा है । गीदड़ यदि सिंह
को नहीं मार सकता तो क्या इस का नाम अभयदान हो जावेगा। ... प्रश्न-उक्त सिद्धान्तों के सम्बन्ध में तेरहपन्थ के .
मान्य ग्रन्थों का कोई प्रमाण दे सकते हैं ? .. .... उत्तरतेरहपन्थ के सिद्धान्तों का जो परिचय कराया गया ....
है, वह उन के अपने 'भ्रम-विध्वंसन' आदि ग्रंथों के आधार पर ही कराया गया है । इन सिद्धान्तों के परिचायक वाक्य निम्नोक्त हैं... 'साधु थी अनेरा कुपात्र छे, अनेरा ने दीधा अनेरी
i... तेरहपन्थियों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त के लिए.
तथा उन की भ्रमोत्पादक युक्तियों का समाधान जानने के लिए पाठकों को - "जैन-दर्शन में श्वेताम्बर तेरहपन्थ” नामक पुस्तक (मूल्य ९ आना)....
प्राप्ति-स्थान-श्री जवाहर विद्यापीठ, भीनासर (बीकानेर) देखनी चाहिए। : :