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प्रश्नों के उत्तर
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. कुंपात्र को दान देना तो खराव खेत में बोज बोना है पुण्य वीज कैसे उत्पन्न हो सकता है। अर्थात् नहीं होता।
कुपात्र दान, मांसादि सेवन, व्यसन कुशीलादिक यह तीनों एक ही मार्ग के पथिक हैं । जैसे चोर, जार, ठग यह .. तीनों समान व्यवसायी हैं। उसी तरह कुपात्र दान भी मांसादि सेवन, व्यसन कुशीलादि की श्रेणी में गणना करने योग्य है। . . . . . . . . . . . . . .
... ....... -भ्रमविध्वंसन पृष्ठ.८० . . अर्थात्-कुपात्रदान, मांसाहार और वेश्यागमन ये तीनों एक समान हैं । जैसे चोर, यार और ठग इन तीनों के एक जैसे संकल्प होते हैं, वैसे ही कुपात्रदान भी मांस-भक्षण और कुशील-सेवन के समान ही समझना चाहिए । .
"कुपात्र दान में पुण्य परूपे, तिण सू लोक हणे जीवा ने विशेषो। कुगुरु . . एहवा चाला चलावे, ते भ्रष्ट हुआ लेई साधुरो भेषो।"
-अनुकम्पा ढाल १३, कड़ी ६ ...... कुपात्रदान में पुण्य बताने से लोग जीवों को विशेष मारते हैं, . . पुण्य बताने वाले कुगुरु हैं, वे साधु का वेष लेकर भ्रष्ट होते हैं।
"कुपात्र जीवां ने बचावियां, कुपात्र ने दिया दान जी। प्रो सावध कर्तव्य संसार नो, भाख्यो छे भगवान जी ।।"
अनुकम्पा ढाल १२, कड़ी १० .