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प्रश्नों के उत्तर .
mammaminminimin. पिलाना पाप है। किन्तु स्थानकवासी परम्परा तेरहपन्य के इस . . सिद्धान्त में कोई विश्वास नहीं रखती। यह परम्परा एकेन्द्रिय और .
और पंचेन्द्रिय जीवों को एक समान नहीं मानती है। इस सम्बन्ध : में पीछे वर्णन किया जा चुका है। . . ....
- तेरहपन्थ के इस विश्वास को यदि मान लिया जाए तो साधु का दर्शन करना, व्याख्यान सुनना, साधु को चातुर्मास आदि की विनति करने के लिए जाना, दीक्षा देना, सम्मेलन करना यहां तक कि तीर्थंकर के दर्शन करना भी पाप माना जाएगा। क्योंकि इन सभी कार्यों के प्रारम्भ में एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती है। बल्कि कभी-कभी तो च्यूण्टो आदि पाँव के नीचे आ जाने परं त्रस . जीवों की भी हिंसा हो जाती है । यदि इस हिंसा के होते हुए भी साधु के दर्शन करना, चातुर्मास आदि के लिए उन्हें विनति करना
तथा व्याख्यान सुनने के लिए घर से चलना, दीक्षा-महोत्सव की. - तैयारी करना, मुनियों का सम्मेलन भरना तथा तीर्थंकर महाराज
के दर्शन करना आदि धार्मिक कार्य पापरूप नहीं, तो फिर पार... म्भिक हिंसा के कारण किसी मरते हुए जीव को बचाना या कष्ट ।
पाते हुए किसी जीव को कष्ट-मुक्त करना पाप कैसे माना जा सकता है ? दूसरी बात यह है, जहाँ स्थावर जीवों की हिंसा नहीं है उस जीव-रक्षा में तो पाप नहीं होना चाहिए । कल्पना करो। : एक व्यक्ति प्यासा है,भूखा है। उसे एक व्यक्ति दूध पिला देता है। - ऐसी दशा में कोई पाप नहीं होगा ? क्योंकि दूध पिलाने में तो ... स्थावर जीवों को हिंसा नहीं होने पाती है । पर तेरहपन्य तो ऐसी. . .. जीव-रक्षा में भी पाप मानता है। उसके यहां तो जीव-रक्षा ही. - पाप है, चाहे उसमें स्थावर जीवों की हिंसा हो या न हो।....
... जैन-शास्त्र अहिंसा-प्रधान शास्त्र है। इनकी रचना प्रवान